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जैनहितैषी
स्त्री-पुरुषको पढ़ाने लिखानेका व्रत ग्रहण कर लेना चाहिए । जो पढ़े लिखे नहीं हैं किन्तु समर्थ हैं उन्हें धनकी सहायता करके एक दो बालकोंको शिक्षित बनानेकी प्रतिज्ञा करना चाहिए । नगरों और कस्बोंकी अपेक्षा गाँव-खेड़ोंमें शिक्षाप्रचारके उद्योगकी बड़ी जरूरत है। इसके लिए यदि कुछ चलते-फिरते शिक्षक रक्खे जावें और यदि वे प्रत्येक गाँवमें दो दो चार चार महीने ठहरकर वहाँके लड. कोंको पढ़ना लिखना सिखलावें तो बहुत लाभ हो सकता है । यदि कुछ छोटी छोटी सुन्दर प्रारंभिक पाठ्य पुस्तकें तैयार की जावें और वे बहुत ही सस्ती लागतके मूल्यमें या मुफ्तमें बाँटी जावें तो बहुत लाभ हो । इस तरह जैसे बने तैसे प्रत्येक देशवासीको देशमें शिक्षा प्रचारके लिए यत्न करना चाहिए। ...
५ एक स्त्रीरत्नका अन्त । मिशन कालेज इन्दौरके प्रोफेसर बाबू रघुवरदयालजी जैनी एम. ए. की सुशीला गृहिणी श्रीमती कुन्दनबाईकी मृत्युका संवाद सुनकर हमें बहुत दुःख हुआ । बाबू साहब हमारे मित्र हैं। उनके द्वारा हमें विदित हुआ कि स्वर्गीया कुन्दनबाई एक स्त्रीरत्नथीं। उनका स्वभाव बहुत ही अच्छा था । शिक्षा भी उन्हें बहुत अच्छी मिली थी। उनमें अपने विद्वान् पतिको सब तरहसे प्रसन्न रखने योग्य योग्यता भी थी। उनका रहन-सहन देशी ढंगका था और वह बहुत ही पवित्र सादा और मोहक था । वे दयाल, उदार, और धर्मसे प्रेम रखनेवाली थीं । धार्मिक पुस्तकोंके स्वाध्याय करने और संग्रह करनेका उन्हें बहुत शौक था।
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