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बचने के लिए पीलेरंगका चश्मा लगाना पड़ता है | शरीरके जुदाजुदा स्थानों में यक्ष्मा बीजाणुओंका आक्रमण होता है, परन्तु इलाज सबका एक ही प्रकारका हैं। पहले दिन पैरों के तलुओं को धूपमें फैलाके रखना चाहिए, दूसरे दिन दोनों पैर खुले करके रखना चाहिए, तीसरे दिन जानु, चौथे दिन तलपेट ( पेडू या तरेट), पाँचवें दिन छाती और छट्टे सातवें दिन गर्दन तथा मस्तक पर धूप लगाना चाहिए । इस तरह के प्रयोगोंसे सूर्यकिरणोंकी रासायनिक शक्ति यक्ष्माके बीजोक नष्ट कर देती हैं। पार्वतीय प्रदेशों में सूर्य की किरणों की यह शक्ति बहुत अधिक रहती है - समुद्रतीर के स्थानों में उतनी नहीं होती । कनि नामक द्वीपमें एक बड़ा भारी अस्पताल हैं । उसमें इस सौरचिकित्सा से इतना लाभ हुआ है कि न्यूयार्क शहर के लोग अब एक और हास्पिटल बनाने की तैयारी कर रहे हैं । हमारे देशके लड़के बच्चे नंगे फिरा करते हैं और खुली हवा तथा सूर्यकिरणोंसे अपने शरीरको स्नान कराते रहते हैं । इससे उनके स्वास्थ्यको बहुत लाभ पहुँचता . है। इस बात की हमने स्वयं परीक्षा की है कि प्रतिदिन कुछ समय तक सूर्यको किरणें शरीर पर पड़ने देने से स्वास्थ्यको बहुत लाभ पहुँचता है । रोमकूपोंको स्वच्छ रखने के लिए सूर्यकिरणें बहुत ही उपयोगी हैं। संशोधन - गताङ्क ११४ वे पृष्टके शिलालेखके अन्तमें 'बोद्धे : थूपे " और उसके अनुवाद में 'बौद्ध स्तूप' छप गया है । पाठक, इसके स्थान में 'बोद्ध स्तूप' पढ़ें और उससे पहले के आठवें अंक ! जो 'डेड लाख वर्षका पुराना मनुष्य ' शीर्षक नोट निकला है तह 'बाबू ब्रजमोहनलालजी वर्मा ' का लिखा हुआ है । उसके नीचे श्रीयुक्त 'ज 'गन्मोहन वर्मा' का नाम छप गया है । पाठकगण उसे भी सुधार लें ।
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