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दिखानेके लिए काफी कह चुका हूँ कि जैनमतमें ज्ञानका बड़ा भंडार है और यह उनके अन्वेषणके योग्य है जो प्राचीन भारतकी दार्शनिक तथा धार्मिक उन्नति और इतिहासके प्रेमी हैं।
अनुवादक
'संशोधक'
सांख्यदर्शन। (गतांककी पूर्ति )
वेद। . . यह बात पहले ही कही जा चुकी है कि सांख्यप्रवचनके कर्ता ईश्वरको नहीं मानते हैं, परन्तु वेदको मानते हैं। मालूम होता है. कि पृथिवीमें शायद ही कोई दर्शन या शास्त्र होगा जो धर्मपुस्तकका तो प्रामाण्य स्वीकार करता हो;परन्तु धर्मपुस्तकके विषयीभूत और प्रणेता जगदीश्वरके अस्तित्वको स्वीकार न करता हो । यह · वेदभक्ति' भारतवर्षकी बड़ी ही विस्मयकारिणी चीज़ है । इस विषयको हम कुछ विस्तारके साथ लिखना चाहते हैं। - मनुजी कहते हैं-"वेदको छोड़कर और सब ग्रन्थ मिथ्या हैं। भूत भविष्यत् वर्तमान, शब्द स्पर्श रूप गन्ध, चतुर्वर्ण, तीन लोक, चतुराश्रम आदि सब ही वेदसे प्रकाश हुए हैं । वेद मनुष्योंका परम साधन है। जो वेदज्ञ है, वही सेनापतित्व, राज्यशासकत्व और सर्वलोकाधिपत्यके योग्य है । जो वेदज्ञ है वह चाहे जिस आश्रममें रहे सदा ब्रह्ममें लीन होने योग्य है । धर्मजिज्ञासुओंके लिए वेद ही परम प्रमाण है। जो ब्राह्मण तीन लोककी हत्या करनेवाला और जहाँ तहाँ
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