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________________ ५९९ पैदा होता है। दूसरी बार उससे आसानीसे, तीसरी बार उससे भी ज्यादह आसानीसे, इसी प्रकार ज्यादह ज्यादह आसानी होती जायगी और वह विचार धीरे धीरे मनका एक अंग हो जायगा। अब इसको दूर करना कठिन हो जायगा । परन्तु स्मरण रहे कि संसारमें कोई काम कठिन भले ही हो, परन्तु असम्भव कोई भी नहीं है । धीरे धीरे अभ्यास करनेसे कठिनसे कठिन काम भी सरल हो जाता है। यह प्रत्यक्षसिद्ध सिद्धान्त सर्वमान्य है। इसमें किसीको कोई भी शंका नहीं हो सकती है । इसी सिद्धान्तको दृष्टिमें रखते हुए प्रत्येक मनुष्य अपने विचारोंको वशमें कर सकता है और उनपर अधिकार पा सकता है। यदि शुरूमें सफलता न हो, या कुछ समय तक होती न दीखती हो तो कोई परवा नहीं। निराश कभी मत होओ । उद्योग कभी निष्फल नहीं जाता । बार बार कोशिश करो। बार बारकी कोशिशसे एक न एक दिन अवश्य सफलता होगी। जिस कामको तुम कठिन समझते हो वह सरल हो जायगा और जिन विचारोंको अभी तुम वंशमें नहीं कर सकते थे उन्हीं विचारों पर तुमको पूर्ण अधिकार हो जायगा। : अतएव प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारोंको वशमें कर सकता है और मनुष्यमात्र इस शक्तिको प्राप्त कर सकता है कि चाहे जिस प्रकारके विचारोंको अपने मनमें आनेसे रोक दे । क्योंकि यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त है और हमें इसे कभी न भूलना चाहिए कि किसी भी कामके लिए हमारी प्रत्येक बारकी कोशिश उस कामको ज्यादह आसान बना देती है, चाहे शुरूमें असफलता ही क्यों न हो। अर्थात् चाहे शुरू में हमें किसी काममें सफलता न हो, तो भी ज्यों ज्यों वह काम किया जायगा त्यों त्यों उसमें ज्यादह आसानी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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