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________________ ४१५ योग्यता नितान्त असत्य है तो कह सकते हैं कि उन्हीं भट्टारकजीने यह जिनसेनत्रिवर्णाचार बनाया है। परन्तु फिर भी इतना जरूर कहना होगा कि उन्होंने सोमसेन भट्टारकके पट्ट पर होनेवाले जिनसेन भट्टारककी हैसियतसे इस ग्रंथको नहीं बनाया है । यदि ऐसा होता तो वे इस ग्रंथमें कमसे कम अपने गुरु या पूर्वज सोमसेन भट्टारकका जरूर उल्लेख करते, जैसा कि आम तौर पर सब भट्टारकोंने किया है । और साथ ही उन पद्योंमेंसे ब्रह्ममुरिका नाम उड़ाकर उनके स्थानमें 'गौतमर्षि' न रखते जिनको उनके पूर्वज सोमसेनने बड़े गौरवके साथ रक्खा था; वल्कि अपना कर्तव्य समझकर ब्रह्मसूरिके नामके साथ साथ सोमसेनका नाम भी और अधिक देते । परन्तु ऐसा नहीं किया गया, इससे जाहिर है कि यह ग्रंथ उक्त भट्टारककी हैसियतसे नहीं बना है। बहुत संभव है कि जिनसेनके नामसे किसी दूसरे ही व्यक्तिने इस ग्रंथका सम्पादन किया हो; परन्तु कुछ भी हो,-भट्टारक जिनसेन इसके विधाता हों या कोई दूसरा व्यक्ति इसमें सन्देह नहीं कि जिसने भी इस त्रिवर्णाचारका सम्पादन किया है, उसका आभिप्राय जरूर रहा है कि यह ग्रंथ सोमसेन और ब्रह्मसूरिके त्रिवर्णाचारोंसे पहला, प्राचीन और अधिक प्रामाणिक समझा जाय । यही कारण है जो उसने सोमसेन त्रिवर्णाचारके अनेक पद्योंमेंसे 'ब्रह्मसूरि' का नाम उडाकर उसके स्थानमें गौतम स्वामीका गीत गाया है और सोमसेन त्रिवर्णाचारका-जिसकी अपने इस ग्रंथमें नकल ही नकल कर डाली है-नाम तक भी नहीं लिया है। इसी प्रकार एक स्थानपर पं० आशाधरजीका नाम भी उड़ाया है; जिसका विवरण इस प्रकार ___सोमसेनत्रिवर्णाचारके १० वें अध्यायमें निम्नलिखित चार पद्य पंडित आशाधरके हवालेसे 'अथाशाधर ' लिखकर उद्धृत किये गये हैं । यथाः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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