________________
१६६०) में बनाकर समाप्त किया है । * इस मुहूर्तचिन्तामणिके संस्कार प्रकरणसे बीसियों श्लोक और उन श्लोकोंकी टीकाओंसे बहुतसा गद्यभाग और पचासों पद्य ज्योंके त्यों उठाकर इस त्रिवर्णाचारके १२ वें. और १३ वें पर्वमें रक्खे हुए हैं । मूल ग्रंथ और उसकी टीकासे उठाकर रक्खे हुए पद्योंका तथा गद्यका कुछ नमूना इस प्रकार है:
"विप्राणां व्रतबन्धनं निगदितं गर्भाजनेर्वाष्टमे । वर्षे वाप्यथ पंचमे क्षितिभुजां षष्ठे तथैकादशे॥ वैश्यानां पुनरष्टमेप्यथ पुनः स्यादूद्वादशे वत्सरे । कालेऽथ द्विगुणे गते निगदितं गौणं तदाहुर्बुधाः ॥१३-८॥ कविज्य चंद्रलग्नपा रिपो मृतौ व्रतेऽधमाः व्ययेब्जभार्गवौ तथा तनौ मृतौ सुते खलाः ॥ १३-१९ ॥ “गर्भाष्टमेषु ब्राह्मणमुपनयेद्गभैंकादशेषु राजन्यं गर्भद्वादशेषु वैश्यमिति बहुत्वान्यथानुपपत्यागर्भषष्टगर्भसप्तमगर्भाष्टमेषु सौरवर्षेष्विति वृत्तिकृद्याख्यानात्त्रयाणामपि नित्यकालता।" ...
ऊपरके दोनों पद्य मुहूर्तचिन्तामाणिके पाँचवें प्रकरणमें क्रमशः नम्बर २९ और ४१ पर दर्ज हैं और गद्यभाग पहले पद्यकी टीकासे लिया गया है । मुहूर्तचिन्तामणि और उसकी टीकाओंसे इस प्रकार गद्यपद्यको उठाकर रखने में जो चालाकी की गई है और जिस प्रकारसे, अन्धकारके जमानेमें, लोगोंकी आँखोंमें धूल डाली गई है, पाठकोंको उसका दिग्दर्शन आगे चलकर कराया जायगा । यहाँ पर सिर्फ इतना बतला देना काफी है कि जब इस त्रिवर्णाचारमें मुहूर्तचिन्तामणि* जैसा कि टीकाके अन्तमें दिये हुए इसका पद्यसे प्रगट है:
"शाके तत्त्वतिथीमिते (१५२५) युगगुणाब्दो नीलकंठात्मभूदुग्धाब्धि निखिलार्थयुक्तममलं मौहूर्तचिन्तामणिम् । काश्यां वाक्यविचारमंदरनगेनामथ्य लेखप्रियाम् । गोविन्दो विधिविद्वरोऽतिविमलां पीयूषधारां व्यधात्॥६-५॥"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org