________________
२२ पंचवर्गपाहुड, २३ कर्मविपाकपाहुड़, २४ वस्तुपाहुड़, २५ बुद्धिपाहुड़ २६ पयद्धपाहुड़, २७ उत्पादपाहुड़, २८ दिव्वपाहुड़, २९ सिक्खापाहुड, ३० जीवपाहुड़, ३१ आचारपाहुड़, ३२ स्थानपाहुड़, ३३ प्रमाणपाहुड़, ३४ आलापपाहुड़, ३५ चूलीपाहुड़, ३६ षट्दर्शनपाहुड़, ३७ नोकम्मपाहुड, ३८ संठाणपाहुड़, ३९ नितायपाहुड़, ४० एयंतपाहुड़, ४१ विहयपाहुड, ४२ सालमीपाहुड़।
कुन्दकुन्दश्रावकाचार नामका संस्कृत ग्रन्थ भी कुन्दकुन्दस्वामीके नामसे प्रसिद्ध था; परन्तु जाँच करनेसे मालूम हुआ कि यह उनका बनाया हुआ नहीं है। किसी धूर्तने अपने किसी प्रयोजनकी सिद्धिके लिए 'विवेकविलास' नामक श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थके दो चार श्लोक काट छाँट कर उसे उक्त नामसे प्रसिद्ध कर रक्खा था ।
कुन्दकुन्दस्वामीके जितने ग्रन्थ उपलब्ध हैं, वे सब बहुत ही सुगम और सरल भाषामें लिखे गये हैं । ऐसा मालूम होता है कि वे निरन्तर ही इस बातका ध्यान रखते थे कि मेरी रचना बहुत ही सहज और बोधगम्य हो। __ आपकी रचनामें पहले तीनग्रन्थ (समयसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार ) सर्वशिरोमणि हैं। इन्हें प्राभूतत्रय, या नाटकत्रय कहते हैं। जैनधर्मका वेदान्त या अध्यात्म इन्हीं तीन ग्रन्थों में है। इन ग्रन्थोंको यदि जैनधर्मका जीव या प्राण कहें, तो भी अत्युक्ति न होगी। इनका स्वाध्याय और मनन किये बिना कोई यह नहीं कह सकता कि मैंने जैनधर्म जान लिया ।
. (सनातनजैनग्रन्थमालाके लिए लिखा गया ।)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org