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जैनहितैषी।
नीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् ।
जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ १०वाँ भाग] चैत्र-वै०,श्री०वी०नि०सं० २४४०।[६,७ वाँ अं०
विनोद-विवेक-लहरी।
बुढ़ापेकी बातें। सम्पादक महाशय ! भंग नहीं पहुँची, इधर कई दिन बड़े कष्टसे बीते । आजका यह लेख आँखें फाड़ फाड़ कर लिखा है। अपनी बुद्धिसे लिखा है; भंगभवानीकी कृपासे नहीं। आज एक अपने मनक दुःखकी बात लिखता हूँ। _ मैं बुढ़ापेकी बातें लियूँगा । लिवू-लिखू कर रहा हूँ, लेकिन लिख नहीं पाता । हो सकता है कि ये दारुण या करुण बातें मुझे बहुत ही प्यारी लगती हों, क्योंकि अपने सुखदुखकी बातें सबको. अच्छी मालूम पड़ती हैं; किन्तु यदि मैं इन बातोंको लिखूगा तो दूसरा कोई क्यों पढ़ेगा ? जवान लोग ही प्रायः लिखते पढ़ते हैं, बूढे लोग नहीं । जान पड़ता है, मेरी इन बुढ़ापेकी बातोंको पढ़नेवाला एक भी न निकलेगा। ___इसीसे मैं ठीक बुढापेकी बातें नहीं लियूँगा । वैतरणी ( यमलोककी एक भयानक नदी ) के किनारे लगे हुए अन्तिम जीवनसोपान
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