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________________ ३३८ करता है । प्रतिवादीके विषयमें भी यही बात है। वादसभाके चार अंग होते हैं, अर्थात् (१) वादी; (२) प्रतिवादी; (३) सभ्य; और (४) सभापति । वादी और प्रतिवादीका कर्तव्य प्रमाणसे अपने पक्षका समर्थन करना और दूसरेके पक्षका खंडन करना है। दोनों पक्षोंको यह बात स्वीकृत होनी चाहिए कि सभ्योंमें उनके सिद्धांतोंके समझनेकी योग्यता है । सभ्योंकी स्मरण शक्ति अच्छी होनी चाहिए, वे अच्छे विद्वान् होने चाहिए और उनमें बड़ी योग्यता संतोष और निष्पक्षता होनी चाहिए । उनका काम यह है कि वे बादके विषयके संबंधमें वादी और प्रतिवादीके कथन और उत्तरोंको कहें, उनके वाद और प्रतिवादके गुणों और दोषोंकी परीक्षा करें और कभी कभी उनके कथनका आशय प्रकट करके परिणत फल स्थापित करें और यथासंभव वादके परिणामको प्रकट करें । सभापति बुद्धि, अधिकार, सहनशीलता और निष्पक्षतासे भूषित होना चाहिए । उसका काम पक्षों और सभ्योंकी वक्तृताकी परीक्षा करना और उनके झगडोंको रोकना है । यदि पक्षोंको केवल विजय पानेकी इच्छा हो, तो वे वादको जब तक सभ्य चाहें शक्तिपूर्वक जारी रख सकते हैं; परन्तु यदि वे सत्यका अन्वेषण ही करना चाहें तो जब तक सत्यका निर्णय न हो जाय अथवा जब तक वे अपनी शक्तिको स्थिति रख सकें, वादको चला सकते हैं । हेमचन्द्र सारि (ई०सन् १०२२-१११७) १०३. हेमचन्द्र सूरि ( उपनाम कलिकालसर्वज्ञ ) अहमदाबादमें धंधुकमें पैदा हुए थे और वज्रशाखाके देवचन्द्रके शिष्य थे। वे राजा जयसिंहके समकालीन थे। कहते हैं कि लगभग संवत् ११७७ से १२२७ तक वे गुजरातके महाराज कुमारपालके गुरु रहे। उन्होंने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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