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क्षण चतुराईसे दूधका दूध और पानीका पानी कर दिया । रूपिणी अपने पति के साथ आनन्द से रहने लगी ।" बस यही इस पुस्तकके आख्यानका सार है । पुस्तक बहुत अच्छे ढंगसे लिखी गई है । इसकी रचना मूल कथासे भी अधिक भावपूर्ण और शिक्षाप्रद हो गई है । एक पुरानी कथाका ऐसा अच्छा रूपान्तर जैनसाहित्य में शायद यही सबसे पहला है । एक अतिशय पतिता स्त्री भी यदि घृणा की दृष्टिसे न देखी जाय और दयापूर्ण हृदयसे समझाई जाय, तो एक आदर्श स्त्री बन सकती है और अपने पूर्वकृत पापोंका प्रायश्चित करने का अवसर पा सकती है । यह इस पुस्तककी प्रधान दिक्षा है | मालूम नहीं, आजकलका समाज इसको मानेगा या नहीं । जो भाई 1 मराठी भाषा समझ सकते हैं, उन्हें यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। ६४ पृष्ठकी पुस्तकका मूल्य छह आना अधिक है ।
२५ ऋग्वेदके बनानेवाले ऋषि --- सम्पादक, बाबू सूरजभानु वकील। प्रकाशक, बाबू ज्योतीप्रसाद ए. जे. देवबन्द जिला सहारनपुर। मूल्य छह आने। छापेंकी कृपासे अत्र वेदोंकी प्राप्ति बहुत सुलभ हो गई है। अधिकारका बन्धन भी टूट गया है - जिसके जीमें आवे वही वेदोंको मँगाकर पढ़ सकता है। इसलिए आजकल पढ़े लिखे लोगों में वेदोंकी खूब चर्चा है। जैनसमाज में भी कुछ समय से वेदोंकी चर्चा होने लगी है । परन्तु यह चर्चा केवल खण्डन मण्डनके अभिप्राय से होती है और वह खण्डन मण्डन भी बहुत उथला और हलका होता है। यदि ऐसा न होता, तो इस चर्चासे बहुत लाभ होता। लोग यह जानने लगते कि वेद क्या हैं, उनमें क्या लिखा है और उनका इतना महत्त्व क्यों है । हर्ष है कि यह पुस्तक खण्डन मण्डनके ढंगसे नहीं लिखी गई है । इसके पढ़ने से हमारा वेद
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