SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप कृपा न करते, तो हमारे पाठक उन महत्त्वकी बातोंसे अज्ञात रहते, जो इस लेखके द्वारा प्रकट हुई हैं। जो सज्जन इतिहास और ' न्यायमें थोड़ी बहुत गति रखते हैं, उन्होंने इस लेखको बहुत ही महत्त्वका बतलाया है और वास्तवमें है भी यह ऐसा ही । यदि यह ग्रन्थ इतना अच्छा न होता, तो 'डाक्टर आफ फिलासफी' के कार्समें कभी न रक्खा जाता । इस लेखमें न्यायाचार्योंका जो ऐतिहासिक परिचय दिया गया है, उसके अनेक स्थल हमारे कई पाठकोंको अरुचिकर हुए हैं, बल्कि किसी किसीने तो आक्षेप भी कर डाले हैं; परन्तु यह पहले ही सूचित कर दिया गया था कि इसमें जो कुछ लिखा जायगा, वह सब मूल लेखकका अभिप्राय होगा; अनुवादक या सम्पादक उसका जिम्मेवार नहीं । अब रहा यह कि ऐसे स्थलों पर अनुवादक या सम्पादक अपना नोट लगा देता, सो हमारी समझमें एक नामी विद्वानकी निश्चय की हुई बातका खण्डन करना सहज काम नहीं- इसके लिए पाण्डित्य और परिश्रम दोनोंकी जरूरत है । 'ठीक नहीं है ' कह देना तो सहज है, पर 'क्यों ठीक नहीं है ?' यह लिखना कुछ काम रखता है । अब लेख सम्पूर्ण हो गया है, इसकी जो जो बातें ठीक न हों, विद्वानोंको चाहिए कि परिश्रम करके उनका उत्तर लिखें और पाठकोंका भ्रम दूर कर दें । इस लेखको, विशेष करके इसके न्यायविचारको पढ़ते पढ़ते साधारण पाठक ऊब गये थे और दिन भी बहुत हो गये थे, इस लिए हमने इसे शीघ्र समाप्त कर देना उचित समझा और इससे इस अंकमें हम आचार्य हेमचन्द्रके आगेके केवल उतने ही अंशका अनुवाद प्रकाशित करते हैं, जो इतिहाससे सम्बन्ध रखता है---ग्रन्थोंके 'न्यायविचार'का अंश छोड़ देते हैं । यदि कभी कोई धर्मात्मा महाशय इसे जुदा पुस्तकाकार प्रकाशित करनेकी उदारता दिखलावेंगे, तो उस.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy