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________________ १७६ ४ संस्कृतविद्यालय - हमारे यहाँ संस्कृतकी कई पाठशालायें हैं परन्तु धनाभावसे उनकी अवस्था जैसी चाहिए वैसी सन्तोषजनक नहीं है । इसलिए अबतक एक आदर्श संस्कृतविद्यालयकी आवश्यकता बनी ही है । यह ठीक है कि संस्कृत भाषा अब कोई जीवित भाषा नहीं है । संसारकी सर्वश्रेष्ठ भाषा होनेपर भी उसमें हमारी नवीन जीवन समस्याओंके हल करनेकी शक्ति नहीं है; तो भी हमें यह न भूल जाना चाहिए कि वह हमारे पूर्वजोंके यशोराशिकी स्मृति है और हमारी प्राचीन सभ्यताकी उज्ज्वल निदर्शन है । और धर्मतत्त्वों का मर्म समझना तो उसकी शरण लिये बिना अब भी एक तरहसे बहुत कठिन है । अतएव अँगरेजी और हिन्दीके विद्यालयों के समान इस पवित्र देववाणीकी रक्षाके लिए संस्कृतविद्यालयकी भी बड़ी भारी आवश्यकता है । चार लाखकी रकमसे संस्कृतविद्यालय बहुत अच्छी तरहसे चल सकता है । संस्कृत विद्यार्थियोंके विषय में अकसर यह शिकायत सुनी जाती है कि वे पण्डिताई करनेके सिवा और किसीके कामके नहीं होते हैं; परन्तु प्रयत्न करने से यह शिकायत दूर हो सकती है । संस्कृतके साथ साथ उन्हें अच्छी हिन्दी, काम चलाऊ अँगरेजी और किसी एक उद्योगकी शिक्षा देनेका भी प्रबन्ध करना चाहिए । ऐसा करने से वे जीविका के लिए चिन्तित न रहेंगे । शिक्षापद्धतिका ज्ञान भी उन्हें अच्छी तरहसे करा देना चाहिए जिससे यदि वे अध्यापकी करना चाहें तो योग्यतापूर्वक कर सकें। संस्कृतके अध्यापकोंकी आवश्यकता भी हमारे यहाँ कम नहीं है । अन्तमें मैं यह निवेदन कर देना भी आवश्यक समझा हूँ कि इस बड़ी रकम से केवल एक ही अच्छी संस्था स्थापित करना चाहिएइसका एकसे अधिक जुदाजुदा कामोंमें बाँटना उन लोगों के लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.522793
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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