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Vol.II-1996
भावना : एकचिन्तन
१६. उत्तराध्ययनसूत्र, १४/४० - साध्वी चंदना, पृ० १४१. १७. सूत्रकृतांग, २/१/११, उद्धृत जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-२, सागरमल जैन,
राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर १९८२, पृ० ४३२. १८. सुप्रापं न पुन: पुंसां बोधिरत्नं भवार्णवे।
हस्ताद्दष्टं यथा रत्नं महामूल्यं महार्णवे ॥२॥ ज्ञानार्णव, पृ. ४५.
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