SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Vol. 1-1995 धारापद्रगच्छ का संक्षिप्त... सर्वदेवसूरि (वि० सं० १२८८ / ई० स० १२३२) प्रतिमा लेख. (महामात्य वस्तुपाल द्वारा वि० सं० १२९८ / ई० स० १२४२ में शत्रुञ्जयमहातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में उल्लिखित थारापद्रगच्छीय सर्वदेवसूरि संभवत: यही सर्वदेवसूरि हो सकते हैं) विजयसिंह सूरि (वि० सं० १३१५ / ई० स० १२५९) प्रतिमालेख रानात सर्वदेवसूरि (वि० सं० १४५० / ई० स० १३९४) प्रतिमालेख विजयसिंहसूरि (प्रतिमालेख अनुपलब्ध) शांतिसूरि (वि० सं०१४७९-१४८३ / ई०स०१४२३-१४२७) प्रतिमालेख (प्रतिमालेख अनुपलब्ध) (सर्वदेवसूरि) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १५०१-१५१६ / ई०स०१४४५-१४६०) प्रतिमालेख (वि० सं०१५२७-१५३२ / ई० स०१४७१-१४७६) प्रतिमालेख शांतिसूरि रामसेन के वि० सं० १०८४ / ई० स० १०२८ के परिकरलेख में थारापद्रगच्छ के आचार्यों की जो गुरु-परम्परा मिलती है, उसमें सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि का भी नाम मिलता है। समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर इन्हें वादिवेताल शान्तिसूरि के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। इस प्रकार थारापद्रगच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक नवीन तालिका बनती है, जो इस प्रकार है : वटेश्वरसूरि ज्येष्ठाचार्य शांतिभद्रसूरि [प्रथम] सिद्धान्तमहोदधि-सर्वदेवसूरि विजयसिंहसूरि शालिभद्रसूरि [प्रथम Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522701
Book TitleNirgrantha-1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1995
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Nirgrantha, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy