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________________ कन्नड को उपयुक्त माना जाये या नही, और से देखा जा सकता है। मात्र श्रवणबेलगोल असहाय व्यक्ति की सहायता करना कन्नड के प्राचीन महान ग्रंथो का संदर्भ देकर में ही इनकी संख्या बहुत अधिक है। और अस्वीकार करते हो, यदि तुम युद्ध-क्षेत्र से इसका समुचित उत्तर दिया है। चामुण्डराय उनमें से कई एक साहित्य के सुंदर निदर्शन पलायन करते हो तो तुम अपने परिवार के (९७८ ई०स्वी.) के समकालीन नेमिचंद्र है। लिए अमंगल का आमंत्रित करते हो। ने प्राकृत में 'गोम्मटसार' तथा अन्य ग्रन्थो महाकविं रन्न ने बेलगोल में एक शिला अमोघ वर्ष ने जिनसेन का सम्मान की रचना की और केशववर्णी (१३५६ पर अपने हस्ताक्षर 'कविरत्न' छोडे है। यदि किया था तथा चामुण्डराय ने अजितसेन को ई०) ने इनपर कन्नड में अध्ययनपूर्ण टीकाएँ रन्न राजकवि था तो रत्नाकर (१५३० ई०) अभिनन्दित किया। पुष्पदन्त (९६५ ई०) ने लिखी। साहित्यिक इतिहास में यह एक जन कवि। रत्नाकर की कविता दक्षिण उत्तर भारत से आकर राष्ट्रकुटों की तत्कालीन विशेष घटना है की चितौड (राजस्थान) से कर्नाटक में बच्चे गाते है, वृद्धा स्त्रियाँ राजधानी मान्यखेट (वर्तमान मलखेड) में नेमिचंद्र नामक एक अन्य विद्वान ने कर्नाटक चक्की पीसते हुए गाती है और वयोवृद्ध लोग आश्रय प्राप्त किया तथा अपभ्रंश में अपने आकर, सालुबा मल्लिराय (१६ वी शती उनका नियमित स्वाध्याय-अध्ययन करते विशिष्ट ग्रंथ की रचना की। यह एक आदर्श का प्रारंभ) के राज्य में विशालकिर्ती से इन है। रत्नाकर का 'भरतवेश वैभव' एक उदाहरण है कि कर्नाटक के शासक किस कन्नड-टीकाओं का अध्ययन किया और ऐसा काव्य है जिसमें जीवन के विभिन्न अंग प्रकार कहीं भी उपलब्ध कवि प्रतिभाओं को उनका संस्कृत मे रूपांतर किया। यह टिका पूर्णरूपेण प्रतिबिंम्बित हुए है। आश्रय-सहयोग देते थे। जैनाचार्यों ने चार तथा इस का पंडित टोडरमल जी द्वारा किया समृद्ध प्रदेश प्राय: स्थायी शासन में रहते प्रकार के दान या भेंट का उपदेश दिया है। गया हिंदी अनुवाद आज तक अध्ययन में है जिसके प्रतिफल अनेक सांस्कृतिक आहार (भोजन), अभय, औषध और आ रहे है। आज हम केवल सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ विकसित होती है। यद्यपि शूद्रक ने शास्त्र। समाज के लिए इनका अतिशय एकता की बात करते है, किंतु हमारे पूर्व- कर्नाटक की कलह का व्यंगपूर्ण उल्लेख लाभ हुआ है। वास्तव में समाज सेवा पर पुरुषों ने इसे सम्भ्रान्त बौद्धिक जीवन के किया है फिर भी सामान्यतया कर्नाटक की जैन धर्म ने जो बल दिया, यह उसी का एक अंग रूप में अपनाया था। जनता आतिथ्य प्रवण और शांतीप्रिय रही अंग है और इसने जन सामान्य के लिए जैन यह कहना अतिशयोक्ति नही कि जैन है। जैनाचार्यों ने अपनी त्याग और तपस्या धर्म को सहज स्वीकार्य बनाया। जैन धर्म कवियों और आचार्यों के प्रारंभिक प्रयत्नों के बल पर संपूर्ण समाज का आदर प्राप्त का व्यावहारिक प्रयोग महज एक के बिना कन्नड की शब्द सम्पदा की समृद्धी, किया। आचार्य सिंहनन्दि ने गंग नरेश माधव औपचारिकता या सामाजिक दायित्व-मात्र उसकी आकर्षक शैली का विकास सम्भव को आशीर्वाद देते समय जो उपदेश दिये, वे तक ही सीमीत नही है, उससे भी अधिक है। नहीं था। किसी भी समाज के लिए आंतरिक नैतिक गंगनरेश मारसिंह(९७५ ई०) और राष्ट्रकुट जैन ग्रंथकारों का साहित्यिक मनस्तर निदर्शन है। उपदेश का वह प्रसिद्ध पद्य इस नरेश इंद्र चतुर्थ (९८२ ई०) ने जीवन के बहुत विशाल था। उन्होंने अपने धर्म के बाहर प्रकार है अंत समय में राज्यत्याग कर जैन सल्लेखना के विषयोंको भी अपनाया है। इस प्रकार नुडिदुदनारोलं नुडिदु तधिदोडं धारण की थी। मारसिंह का निधन बंकापुर उन्हे अपने युग के बौद्धिक वर्ग की सहानुभूति जिनशासन ककोडं तथा इंद्र चतुर्थ का श्रवणबेलगोल मे हुआ। एवं सहयोग प्राप्त हुआ। काव्यों के य्डदोडमन्यनारिगेरेदट्टदोदं मधुमांस जैन मंदिरो का निर्माण सर्वत्र किया गया अतिरिक्त जैन लेखकों में के शीराज संवेगे जिनमें अनेक अपने स्थापत्य, शिल्प और (१२६० ई०) और भट्टाकलङ्क (१६४० य दो ड म कु लीन र प वर सौंदर्य की दृष्टि से विशिष्ट है। गुजराथ ने ई०) ने व्याकरण, नागवर्म (लगभग ९०० कोलकोडेयादोडमर्थिग्सृथमं यहाँ से प्रेरणा ली। कर्नाटक में काले पत्थरों ई०) ने छन्दशास्त्र, राजादित्य (११९० कुडदोडमाहवांगणदोलोडिदोडं पर जो शिल्प निर्मित हुआ वही गुजराथ में ई०) ने गणित और मंगराज (१३८० ई०) किडुगुं कुलव्रतं। सफेद संगमरमर पर विकसित हुआ। बडे बडे ने आयुर्वेद पर रचनाएँ की। अकलंक, अर्थात् यदि तुम अपने वचन का पालन शासक, सामन्त श्रेष्ठी तथा विशिष्ट विद्यानंद और वादिराज जैसे प्रखर नैयायिक, नहीं करते, यदि तुम जैनाचार को अस्वीकार महिलाओं के मन में जैन संस्थांओ के प्रति जिन्होंने संस्कृत में महत्त्वपूर्ण जैन न्याय के करते हो, यदि तुम परस्त्री की अभिलाषा गहरा लगाव था। श्रवणबेलगोल पर निर्मित ग्रंथो की रचना की, इसी प्रदेश के थे। करते हो, यदि तुम मद्य और मांस का सेवन महान् गोम्मटेश्वर की मूर्ती विश्व के लिए शिलालेखों की दृष्टि से कर्नाटक करते हो, यदि तुम अवांछनीय अयोग्य अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की विभूति है, जिसका कितना समृद्ध है इसे 'एपिग्राफिया कर्नाटिका' व्यक्तियों से घनिष्ठता बढाते हो, यदि निर्माण चामुण्डराय ने कराया था, जो स्वयं ४२ । भगवान महावीर जयंती स्मरणिका २००९
SR No.522651
Book TitleBhagawan Mahavir Smaranika 2009
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Sanglikar
PublisherJain Friends Pune
Publication Year2009
Total Pages84
LanguageMarathi
ClassificationMagazine, India_Marathi Bhagwan Mahavir Smaranika, & India
File Size4 MB
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