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Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
यह शरीर का व्युत्सर्ग नामक छठा तप है।' भट्ट अकलकदेव के अनुसार निःसंगता, निर्भयता और जीवन की लालसा का त्याग ही व्युत्सर्ग तप है। 'औपपातिक सूत्र' में लिखा गया है कि शरीर सहयोग-उपकरण और खान-पान का परित्याग, कषाय संसार का त्याग करना व्युत्सर्ग तप है।
___ इस तरह से हम देखते हैं कि उस तप के द्वारा समस्त परिग्रहों (शरीर और संसार) पर से ममत्व के भाव का त्याग उन परिग्रहों का त्याग करके किया जाता है । ममत्व त्याग करने से व्यक्ति अपनी आसक्ति का त्याग करता है। आसक्ति त्यागने से वह कर्मबन्धन को कमजोर करता है और मोक्ष या कैवल्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।
१. समयणासण-ठाणे बा जे ऊ भिक्खू न वावरे ।
कायस्स विउस्सग्यो छट्ठो सो परिकित्तिओ ॥ ३०॥३६ ॥ उत्तराध्ययन सूत्र । २. निःसंग निर्भयत्व जीविताशा व्युदासाद्यर्थी व्युत्सर्गः ॥९॥२६॥१०॥ तत्त्वार्थवार्तिक । ३. औपपातिक सूत्र, तपोऽधिकारः ।
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