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________________ Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 कलहंस, कलरवो ठाइ ण संठाइ परिणअं निहिविराअम् । "G शरद् ऋतु में कलहंसों की ध्वनि किसे मनमोहक नहीं लगती । परन्तु अब शिखियों की ध्वनि अच्छी नहीं गलती । यहाँ कलहंसों की ध्वनि का बिम्ब श्रवणेन्द्रिय ग्राह्य है । 260 इसके अतिरिक्त सेतुबन्ध में हास्य ध्वनि (४ / ६, ११, १४) धनुषटंकार ( ५ / २२, १२ / ३७) धरणिवर निर्घोष (६/४४), वानरों की कलरवध्वनि ( १२ / ३८), सिंह गर्जन (९ / ३०, ७२), पर्वत गर्जन (१२ / ३९), सुरवधुओं का आक्रन्दन ( १४ / ३०), जय शब्द ( ११ / ७), साधु-साधु Baf (१३/१९), हूंकार (१५ / १ ) और अट्टहास (१५ / २) का सुन्दर बिम्ब प्राप्त होता है । स्पर्श बिम्ब स्पर्श बिम्बों में शीतलता एवं उष्णता, कोमलता एवं कठोरता, मसृणता एवं रूक्षता आदि का अन्तर्भाव रहता है। श्रृंगारिक क्रियाओं में स्पर्श बिम्ब की सम्भावना अधिक होती ये बिम्ब त्वगेन्द्रिय ग्राह्य होते हैं । कवि प्रवरसेन की स्पर्श संवेदना अत्यन्त व्यापक है । शीतलता के साथ कवि के मन में एक सुखद एवं शांतिप्रद अनुभूति जुड़ी हुई होती है । ज्योत्स्ना की शीतलता एवं आह्लादकता अत्यन्त आनन्ददायक है जोहा कल्लोला विअ ससिघवलासु रक्षणीसु हसि अच्छे आ ।"" प्रस्तुत गाथा में ज्योत्स्ना का बिम्ब ग्राह्य है । इसके अतिरिक्त सेतुबन्ध में प्रभातकालीन पवन ( ५ / ११), उष्मा (९/३५), वनाग्नि की उष्मा (९ / ३७ ) एवं संभोग ( १० / ६२ ) आदि का बिम्ब प्राप्त होता है । रूप- बिम्ब नेत्रेन्द्रिय ज्ञानेन्द्रियों में सर्वप्रमुख है । नेत्रेन्द्रिय से ग्राह्य विषयरूप बिम्ब, दृश्य बिम्ब या चाक्षुष बिम्ब कहे जाते हैं । सेतुबन्ध में बहुश: स्थलों पर रूप-बिम्ब की प्राप्ति होती है । प्रभा (१/२), गर्दन (१/२), ज्योत्स्ना ( १ / ७), आकाश ( १ / ११), चन्द्र ( १/२५), हंस (१ / २६ ), अन्धकार (३/३४), सेतु (३ / ५९), वक्ष (४ / ५ ), धूम ( ५ / १९) आदि अनेक रूप बिम्ब हैं। लगभग सभी गाथाओं में रूप बिम्बों की स्थिति है । स्वाद बिम्ब जिह्वेन्द्रियग्राह्य विषय को स्वाद बिम्ब या रस बिम्ब कहते हैं । खारापन, मधुरता, तिक्तता आदि इसके अन्तर्गत आते हैं । सेतुबन्ध में कतिपय स्थलों पर इस बिम्ब की प्राप्ति होती है । मधुर जल (९/३३), लवण रस (९ / ४१) आदि का स्वाद बिम्ब उपलब्ध होता है । गन्ध बिम्ब घ्राणेन्द्रियग्राह्य विषयों को गन्ध बिम्ब कहते हैं । सुगन्ध, दुर्गन्ध आदि इसके अन्तर्गत आते हैं । सेतुबन्ध में अनेक स्थलों पर गन्धबिम्ब लब्ध है । यथा कदम्ब गन्ध (१२ / २०), सप्तच्छद गन्ध (१ / २३), गजमदगन्ध (१३/८७), परिमल गन्ध ( १५ / ४८), वकुलवन का गन्ध ( ९ / ४० ) और हरिताल का गन्ध (९ / ४१) आदि । शरद् ऋतु में सप्तच्छद का गन्ध किसे मनमोहक नहीं लगता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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