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________________ सेतुबन्ध में बिम्ब-विधान यहां पर उपमान के रूप में मदिरा का बिम्ब प्रतिफलित हो रहा है । (५) पथ संवर्ग इस संवर्ग में सेतुबन्ध में वर्णित विभिन्न प्रकार के मार्गों के बिम्बों को अनुस्यूत किया गया है। वानरों का गतिपथ भग्गदुमभङ् गभरिओ उक्त्तिविसदृपडिअमहिहर विसमो । पवआण अहिलगोरु क्खिज्जड बिइअसंकमो व्व गइवहो ॥६ समुद्र से लगा हुआ वानरों का गति पथ संक्षोभ के कारण टूटे वृक्षों के खण्डों से व्याप्त तथा उखाड़कर फैलाये हुए पर्वतों से उबड़-खाबड़ दूसरे सेतु के समान प्रतीत होता है । प्रस्तुत गाथा में वानरों के गमनागमन के मार्ग का बिम्ब लक्षित हो रहा है जो उठाकर फैलाए गए पर्वतों से ऊँच-नीच होने से द्वितीय सेतु की तरह प्रतीत हो रहा है । इसके अतिरिक्त पर्वतमार्ग ( ७ / २२), पुलिन पथ ( ८ / ११ ), रविरथमार्ग (९ / १० ), देवगजों का गतिमार्ग ( ९/६१), सूर्य - अश्वों का मार्ग ( ९/८१ ), सूर्यमार्ग ( ९/८३), रविचन्द्र मार्ग ( ९ / ९२ ), भटों का गतिमार्ग ( १३ / ११) आदि के बिम्ब भी प्राप्त होते हैं । 259 (६) देववर्ग - इस संवर्ग में विभिन्न देवों, विष्णु उनके अवतारों, लक्ष्मी, सिद्धपुरुष, किन्नर आदि को रखा गया है । देव - सेतुबन्ध का कवि काव्यारंभ में ही विभिन्न देवों की स्तुति करता है । मधुमंथन (१/१), नृसिंह ( १ / २ ), शंकर ( १ / ५-८ ) आदि का सुन्दर बिम्ब प्राप्त होता है । महाकाव्य की प्रथम गाथा में सर्वव्यापक भगवान् विष्णु का तथा द्वितीय गाथा में भगवान् नृसिंह का रूपदर्शन होता है । शंकर के अट्टहास, ताण्डव नृत्य आदि का बिम्ब भी ( १ / ५-८ ) सुन्दर रूप में लक्षित हो रहा है । इन्द्रियों के आधार पर बिम्बों का वर्गीकरण बिम्ब इन्द्रियों के ही विषय होते है, उनका विवेचन करना आवश्यक है। संक्षेप में, बाह्यकरणेन्द्रियग्राह्य बिम्ब (१) शब्द बिम्ब Jain Education International अतएव इन्द्रियों के आधार पर वर्गीकरण कर इन्द्रिय बिम्बों का विवेचन अघोविन्यस्त है शब्द बिम्ब वे हैं जिनका ग्रहण कर्णेन्द्रिय के द्वारा किया जाता है । ध्वनिबिम्ब और नादबिम्ब इसी के पर्याय हैं । शब्द एक ओर अर्थ की प्रतीति कराकर वस्तु अथवा भाव का बिम्ब मनश्चक्षुओं के जगाते हैं तो दूसरी ओर ध्वनि से भी अर्थ को मुखर करके आन्तरिक श्रवणों पर ध्वनिचित्र भी उतार देते हैं । इन्हें ही ध्वनि-बिम्ब या शब्दबिम्ब कहते हैं । सेतुबन्ध में अनेक प्रकार के शब्द बिम्ब पाये जाते हैं । काव्यालाप का एक सुन्दर बिम्ब प्रस्तुत है For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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