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________________ कलिकाल सर्वज्ञ कुन्दकुन्द : शिलालेखों के परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार शताधिक शिलालेखादि आचार्य कुन्दकुन्द की यशोगाथा उल्लिखित है । किन्तु मैंने यहाँ कुछ प्रमुख उदाहरण ही प्रस्तुत किये हैं । यद्यपि यहाँ सर्वप्रथम मर्करा के उस ताम्रपत्र वाले लेख का उल्लेख होना चाहिए था जो आ० कुन्दकुन्द के उल्लेख वाला सर्व प्राचीन लेख है किन्तु इसकी प्रामाणिकता विवादग्रस्त' होने के कारण इसके कुछ अंश अन्त में ही उद्धृत किये जा रहे हैं स्वस्ति जितं भगवता गतघनगगननाभेन पद्मनाभेन श्रीमद् जाह्नवीय कुलामलव्योमाभासनभास्करविभूषण विभूषितकाण्वायन सगोत्रस्य विद्वत्सु प्रथमगण्य श्रीमान् कोङ्गणिमहाधिराज अविनीत नामधेय दत्तस्य देसिग गणं कोण्डकुन्दान्वयगुणचन्द्रभटारकशिष्यस्य अभयणन्दि भटार 12 इस तरह हम देखते हैं कि आचार्य कुन्दकुन्द और उनके अन्वय की गौरवशाली परम्परा रही है । और प्राचीन काल से अब तक निरन्तर चल रही इस परम्परा के उल्लेख आज भी प्रायः सभी प्रतिष्ठित मूर्तियों के मूर्तिलेखों में प्रचलित है, जिनके परिपेक्ष्य में हम उनके महान् व्यक्तित्व और कर्तृत्व के साथ ही भारतीय मनीषा को उनके अनुपम योगदान की परख कर सकते हैं । १. २. 241 देखिये जे० शि० सं० भाग २ की प्रस्तावना पृ० ३ में डॉ० हीरालाल जैन ने इसे बनावटी कहा है । मर्करा का यह संस्कृत-कन्नड़ लेख शक सं० ३८८ (४६६ ई०) का है । अविनीत कोणिका मर्करा पत्र ( मर्करा के खजाने में से प्राप्त ताम्रपत्र) लेख में चेर राजाओं की वंशावली इस दान पत्र में दी गयी है । इसी में देसिग (देशीय) गण कोण्डकुन्द अन्वय के गुणचन्द्र भटार ( भट्टारक) के शिष्य अभयणदि भटार आदि की परम्परा का उल्लेख है । ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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