SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य तथा विषय 229 () उत्पात-रुधिर की दृष्टि अथवा राष्ट्रपात का प्रतिपादन करने वाला शास्त्र । या प्रकृति विप्लव और राष्ट्र विप्लव का सूचक शास्त्र ।। (ii) निमित्त-अतीतकाल के ज्ञात का परिचायक शास्त्र, जैसे कूटपर्वत आदि । (iii) मंत्रशास्त्र-भूत, वर्तमान और भविष्य के फल का प्रतिपादक शास्त्र। (iv) आख्यायिका-मातंगी विद्या जिससे चांडालिनी भूतकाल की बातें कहती है। (v) चिकित्सा-रोग निवारक औषधियों का प्रतिपादक आयुर्वेद शास्त्र । (vi) लेख आदि बहत्तर कलायें अर्थात् कलाश्रत-स्त्रीपुरुषों की कलाओं का प्रतिपादक शास्त्र । (vii) आवरण (वास्तुविद्या)-भवन निर्माण की वास्तु विद्या का शास्त्र । (vii) अज्ञान-भारत, काव्य, नाटक आदि लौकिक श्रुतशास्त्र । (ix) मिथ्याप्रवान-बुद्धशासन आदि कुतीर्थिक मिथ्यात्वियों के शास्त्र । बौद्धकालीन लौकिकशिक्षा के प्रमुख विषय कला कौशल थे जिनकी संख्या शान्तिभिक्षु शास्त्री ने छानवें बतायी है।' जो निम्न प्रकार से है-(१) लंधित (२) लिपि (३) मुद्रा (४) गणना (५) संख्या (६) सालम्भ (७) धनुर्वेद (८) जवित (९) प्लवित (१०) तरण (११) इष्वस्त्र (१२) हस्तिग्रीवा (१३) अश्वपृष्ठ (१४) रथ (१५) धनुष्कलाप (१६) स्थैर्य स्थाम (१७) सुशौर्य (१८) बाहुव्यायाम (१९) अङ्कशग्रह (१०) पाशग्रह (२१) उद्यान (२२) निर्याण (२३) अवयान (२४) मुष्टिग्रह (२५) पदबन्ध (२६) शिखाबन्ध (२७) छेद्य (२८) भेद्य (२९) दालन (३०) स्फालन (३१) अक्षुण्णवेधित्व (३२) मर्मवेधित्व (३३) शब्दवेधित्व (३४) दृढ़प्रहारित्व (३५) अक्षक्रीड़ा (३६) काव्यकरण (३७) ग्रन्थ (३८) चित्र (३९) रूप (४०) रूप कर्म (४१) (अ)धीत (४२) अग्निकर्म (४३) वीणा (४४) वाद्य (४५) नृत्य (४६) गीत (४७) पठित (४८) आख्यान (४९) हास्य (५०) लास्य (५१) नाट्य (५२) विडम्बित (५३) माल्यग्रंधन (५४) संवाहित (५५) मणिराग (५६) वस्त्रराग (५७) मायाकृत (५८) स्वप्नाध्याय (५९) शकुनिरुत (६०) स्त्रीलक्षण (६१) पुरुष-लक्षण (६२) अश्व लक्षण (६३) हस्तिलक्षण (६४) गोलक्षण (६५) अजलक्षण (६६) मिशृ लक्षण (६७) श्वरलक्षण (६८) कौटुभ (६९) निर्घण्ट (७०) निगम (७१) पुराण (७२) इतिहास (७३) वेद (७४) व्याकरण (७५) निरुक्त (७६) शिक्षा (७७) छन्दस्विनी (७८) यज्ञकल्प (७९) ज्योतिष (८०) सांख्य (८१) योग (८२) क्रियाकल्प (८३) वैशिक (८४) वैशेषिक (८५) अर्थविद्या (८६) वार्हस्त्य १. शान्तिभिक्षु शास्त्री, ललितविस्तर-पृ० २९६ । २. दिव्यावदान-२।१६, ४२७।२९ । ३. वही-१६१६, ४२७।२८। ४. महावस्तु जि० २१४३४।१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy