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जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य तथा विषय
सके ।' एक जातक में लिखा है कि राजा लोग, चाहे उनके नगर में ही अच्छे विद्वान् हों, अपने पुत्रों को दूर की शिक्षा संस्थाओं में पढ़ने के लिए भेजते थे ताकि उनमें अभिजात कुल में जन्म होने के कारण जो अहंकार होता है, वह दूर हो जाए, वे गर्मी और सर्दी को सहन कर सकें और लोक व्यवहार से परिचित हो सकें ।
लौकिक शिक्षा के विषय
जैन सूत्रों यथा - समवायांग, ज्ञाताघमं* कथा, औपपातिक", राजप्रश्नीय सूत्र आदि ग्रन्थों में बहत्तर कलाओं का वर्णन आया है किन्तु सभी में कुछ न कुछ अन्तर देखने को मिलते हैं । यहाँ समवायांग के अनुसार बहत्तर कलाओं का वर्णन किया जा रहा हैं
तथा
वस्तु बनाने की कला शुद्ध करने की कला (१९) कविता निर्माण करने
(१) लेखन (२) गणित ( ३ ) रूप सजाने की कला (४) नाटक करने की कला (५) गीत गाने की कला (६) वाद्य बजाने की कला (७) स्वर जानने की कला (८) ढोल आदि वाद्य बजाने की कला ( ९ ) समान ताल बजाने की कला (१०) जुआ खेलने की कला (११) वार्तालाप की कला ( १२ ) नगर संरक्षण की कला (१३) पासा खेलने की कला (१४) पानी और मिट्टी के सम्मिश्रण से (१५) अन्न उत्पन्न करने की कला (१६) पानी को उत्पन्न करने (१७) वस्त्र बनाने की कला (१८) शय्या निर्माण करने की कला की कला (२०) प्रहेलिका निर्माण की कला (२१) छन्द विशेष बनाने की कला (२२) प्राकृत भाषा में गाथा निर्माण की कला (२३) श्लोक बनाने की कला (२४) सुगन्धित पदार्थ बनाने की कला (२५) मधुरादि छह रस संबंधी कला (२६) अलंकार निर्माण व धारण की कला (२७) स्त्री को शिक्षा देने की कला ( २८ ) स्त्री लक्षण (२९) पुरुष लक्षण (३०) अश्व लक्षण (३१) हस्ती लक्षण (३२) गो लक्षण (३३) कुक्कुट लक्षण (३४) मेढ़े के लक्षण (३५) चक्र लक्षण (३६) छत्र लक्षण (३७) दण्ड लक्षण (३८) तलवार के लक्षण (३९) मणि के लक्षण (४०) काकिणी चक्रवर्ती के रत्न विशेष के लक्षण ( ४१ ) चर्म लक्षण (४३) सूर्य आदि की गति जानने की कला (४४) राहु आदि की गति जानते की कला (४५) ग्रहों की गति जानने की कला (४६) सौभाग्य का ज्ञान (४७) दुर्भाग्य का ज्ञान (४८) रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि विद्या सम्बन्धी ज्ञान (४९) मन्त्र साधना आदि का ज्ञान (५०) गुप्त वस्तु को जानने की कला (५१) प्रत्येक वस्तु के वृत्त का ज्ञान (५२) सैन्य का प्रमाण आदि जानना (५३) सेना को रणक्षेत्र में उतारने की कला (५४) व्यूह रचने की कला
(४२) चन्द्र लक्षण जानने की कला
१. प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, ओमप्रकाश, पू० २२६ । २. प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, ओमप्रकाश, पृ० २२६ । ३. समवायांग- सम० ७२ ।
४. ज्ञाताधर्म कथा - १।९९ ।
५. औपपातिक ४ ।
६. राजप्रश्नीय सूत्र, ७ सं० मधुकरमुनि, पृ० २०७ ।
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