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________________ जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य तथा विषय विजय कुमार * मानव जीवन का विकास शिक्षा पर आधारित होता है । किन्तु शिक्षा के उद्देश्यों को लेकर विद्वत्जनों में मतभेद पाया जाता है । कुछ लोग शिक्षा का लक्ष्य 'विद्या की प्राप्ति' को मानते हैं तो कुछ लोग 'चरित्र का उन्नयन तथा मानव जीवन का सर्वांगीण विकास बताते हैं । लेकिन शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को विद्या या विकास का ज्ञाता बनाने के अतिरिक्त नैतिक, मानसिक और शारीरिक सभी दृष्टियों से योग्य, सदाचारी व स्वावलम्बी आदि बनाना भी हैं । अन्य प्रकार से इस तरह कहा जा सकता है कि शिक्षा का मूल उद्देश्य afa विकास अथवा विवेक जागृत करना है, जिससे मनुष्य प्रत्येक विषय पर स्वयं निर्णय ले सके और दृढ़ता से उसका पालन कर सके । शिक्षा के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए डॉ० ए० एस० अल्तेकर ने कहा है- 'भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति का उद्देश्य चरित्र का संगठन, व्यक्तित्व का निर्माण, प्राचीन संस्कृति की रक्षा तथा सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यों को सम्पन्न करने के लिए उदीयमान पीढ़ी का प्रशिक्षण था ।" ज्ञान प्राप्ति द्वारा भारतीय संस्कृति अध्यात्ममूलक संस्कृति है जिनमें दो प्रकार की संस्कृतियाँ समान रूप से प्रवाहित हो रही हैं—ब्राह्मण और श्रमण । श्रमण संस्कृति पूर्णरूपेण विशुद्ध साधनों पर आधारित है । श्रमण संस्कृति को जैन एवं बौद्ध विचारधारा में शिक्षा को दो भागों में विभाजित किया गया है— (i) आध्यात्मिक शिक्षा (ii) लौकिक शिक्षा । दोनों ही विचारधाराएँ आध्यात्मिक उन्नति को प्रथम तथा लौकिक उन्नति को दूसरे स्थान पर रखती हैं । मोक्षोपयोगी अर्थात् मोक्ष को केन्द्रबिन्दु मानकर जीव और जगत् आदि सम्पूर्ण ज्ञेय तत्व आध्यात्मिक शिक्षा के अन्तर्गत आते हैं तथा जीवकोपार्जन के लिए शिक्षा प्राप्त करना लौकिक - शिक्षा के अन्तर्गत आते हैं । आध्यात्मिक शिक्षा के देश्य जैन शिक्षा का मूल उद्देश्य आत्मा की चरम विशुद्ध अवस्था को प्राप्त करना अर्थात् आध्यात्मिक चरमपद की उपलब्धि करना तथा मानव में सुप्त अन्तर्निहित आत्मशक्तियों का विकास करना रहा है । व्यक्तित्व की चरम विकास की अवस्था को हो जैन दर्शन में मोक्ष कहा गया है। इस जगत् में जो वस्तु नश्वर है, क्षणभंगुर है, वह अधर्म है । शरीर विनाशी है परन्तु जीव या आत्मा अविनाशी है, अजर-अमर है । यह अविनाशी आत्मा अनेक बार अनेक रूपों में जन्म लेती है । जीव द्वारा मन-वचन और शरीर से किए गये प्रत्येक कर्म-अकर्म का *. दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी । १. अल्तेकर, एन्सियन्ट इण्डियन एडूकेशन, पृ० ८०९ । २. जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास, पू० १९४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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