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________________ 198 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 () संघियो-(1) उद्धृत स्वर की पूर्व स्वर के साथ प्रायः सन्धि नहीं हुई है । यथा निशाचर = णिसाअर (सेतु० ४।६१); सहकार = सहआर (गउ० ११७८); सखीजन = सहिअग (कुमा० ५।९६); अलिकुल = अलि उल (लीला० १७४; ६०७)। (it) संयुक्त मंजन का पूर्व स्वर ह्रस्व हो गया है । यथा मुहूत = मुहुर्त (सेतु० ८७९); कूपर = कुप्पर (गउ० ६८२); मूर्ति-मुत्ति (कुमा० २।३५); नयनोत्पल = णयणुप्पल (लीला• ७७४) । (iii) समास में कहीं-कहीं ह्रस्व स्वर के स्थान में दीर्घ और दीर्घ स्वर के स्थान में ह्रस्व हो गया है । यथानदी-स्त्रोत = णइस्त्रोत (सेतु० ६।८१); शैलकटकादू = सेलकडआओ (गउ० १०३३); महीस्वामिन् = महिसामिआ (कुमा० ७५३); सप्तविंशति = सत्तावीसइ (कुमा० ११२); गौरीमुहस्य = गोरीहरस्स (लीला० ७३५)। (घ) लिंग-ध्यात्य-स्त्रीलिङ्ग के स्थान पर पुल्लिङ्ग का प्रयोग हुआ है। यथा शरत् = सरओ (सेतु० १।१६) (कुमा० ११९) (लीला० ३२); विद्युता = विज्जुणा (सेतु० ४।४०); सरितः = सरियाओ (गउ० १०३५) । (ज) आख्यात-ति तथा ते प्रत्ययों में त् का लोप हो गया है । यथा(i) ति-हसति = हसइ (सेतु० १११३); हरति = हरइ (कुमा ५।६) (लीला. ५७३, ७६६, ७७६); परिणति = परिणइ (गउ० ४३३)। (ii) ते-दीयते = दिज्जइ (सेतु० ६।११); शोभते = सोहइ (गउ० १०४५); रमते=रमइ (कुमा० १११३; ४।६९); भणिते भणिए (लीला० ३०३)। (झ) कृदन्त-त्वा प्रत्यय के स्थान में तूण का आदेश हुआ है । यथा कृत्वा = काऊण (सेतु० ८।२८); श्रुत्वा सोष्ठण (गउ० ८३); भुक्त्वा = भोत्तूण (कुमा० ७५१); भणित्वा = भणिअण (लीला० २६५)। वस्तुतः प्राकृत के प्रतिनिधि महाकाव्यों की उपर्युक्त भाषागत विशेषताओं को देखने के उपरान्त यह दृढ़तापूर्वक कहा जा सकता है कि प्राकृत के सभी प्रतिनिधि महाकाव्यों की रचना महाराष्ट्रो प्राकृत में हुई है। यों कुमारपाल चरित महाकाव्य में शौरसेनी (कुमा० ७.९६); मागधी (८३३); पैशाची (८३९); चूलिकापैशाची (८।१३); और अपभ्रंश (कुमा. ८.१४) के उदाहरण भी प्रस्तुत किये गये हैं। जिन्हें हम उपरोक्त गाथाओं में देख सकते है । निष्कर्ष-अतः हम कह सकते हैं कि महाराष्ट्री प्राकृत की वे सम्पूर्ण भाषागत विशेषताएँ 'प्राकृत के प्रतिनिधि महाकाव्यों' में परिलक्षित हैं, जिनको विद्वानों ने महाराष्ट्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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