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________________ तीर्थंकर ऋषभनाथ का जटा-जूटयुक्त प्रतिमाङ्कन डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज" जैन परम्परा के चौबीस तीर्थकरों में भगवान् ऋषभनाथ प्रथम तीर्थकर है और भगवान महावीर चौबीसवें तीर्थकर। तीर्थंकर ऋषभनाथ को वृषभनाथ और आदिनाथ भी कहते हैं । ऋषभनाथ का उल्लेख जैन साहित्य के अतिरिक्त अन्य जैनेतर पुराण साहित्य में भी आया है। वैदिक साहित्य के सर्वप्राचीन ग्रन्थ 'ऋग्वेद' में तो ऋषभनाथ का उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है। जैन परम्परा में मूर्तिपूजा कब प्रारम्भ हुई, इसके निश्चित उल्लेख नहीं मिलते हैं, किन्तु सर्वप्राचीन प्रमाण ढाई हजार वर्ष ईसा पूर्व (सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों) से प्राप्त होते हैं। जैन-परम्परा में मूर्तिपूजा-प्रचलन के स्पष्ट प्रमाण चौथी-पांचवीं सदी ईसा पूर्व से मिलना प्रारम्भ होते हैं। हाथीगुम्फा अभिलेख (ई० पूर्व लगभग द्वितीय शती) के अनुसार खारवेल ने अपने शासनकाल के बारहवें वर्ष में मगध पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की और भगवान् जिनेन्द्र की वह प्रसिद्ध प्रतिमा पुनः प्राप्त की जिसे कभी राजानन्द (ई० पूर्व चौथी-पांचवीं शती) उठाकर लाया था और 'कलिंगजिन' के नाम से प्रसिद्ध थी। जब जैन-मूर्तिकला अस्तित्व में आयी तब तीर्थंकरों के लाञ्छन (चिह्न) प्रचलित नहीं थे। जैन-कला के प्रारम्भिक काल की मूर्तियों में से मात्र तीर्थंकर ऋषभनाथ की प्रतिमा को उसके जटाङ्कन और पार्श्वनाथ की प्रतिमा को सर्पफण-भस्तकाच्छादन के अंकन को देखकर पहचाना गया। गुसकाल तक जैन तीर्थकर मूर्तियों के साथ तीर्थंकरों की प्रमुख घटनाओं, केवलज्ञानवृक्षों, यक्ष-यक्षियों और संक्षिप्त लेखों का अंकन किया गया। गुप्तयुग में ही तीर्थकरों के लाञ्छनों का निर्धारण हो गया था। जिसका आद्य उदाहरण राजगृह के वैभार. गिरि पर्वत पर उत्खनन से प्राप्त चौथी शती की नेमिनाथ-प्रतिमा है। हमारे देश में तोथंकर ऋषभनाथ की जटा-जूटयुक्त हजारों मूर्तियां प्राप्त हुई है और सम्प्रति प्राप्त भी हो रही हैं। तीर्थंकर ऋषभनाथ ने लम्बी अवधि तक तपस्या की थी, जिस कारण उनके केश बहुत लम्बे-लम्बे हो गये थे। उनकी लम्बी-लम्बी जटाओं का उल्लेख प्राचीन जैन साहित्य में अनेक स्थानों पर आया है । यथा "वातोद्भूता जटास्तस्य रेजुराकुलमूर्तयः ।। धूमालय इव ध्यान-बह्निसक्तस्य कर्मणः ॥"" * दिगम्बर जैन धर्मशाला, राजगिर, नालन्दा । १. पद्मपुराण ३।२८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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