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________________ चित्र- अद्वैतवाद : समीक्षात्मक विवेचन 97 वाला प्रमाण नहीं होता है, उसका अस्तित्व भी नहीं होता है । अपने कथन को स्पष्ट करते हुए चित्र अद्वैतवादी तर्क करते हैं कि यदि बाह्य पदार्थ के अस्तित्व को सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण है तो बाह्य वस्तुवादियों को बतलाना होगा कि वह प्रमाण साकार है अथवा निराकार' ? निराकार प्रमाण जड़पदार्थ का साधक नहीं है-निराकार प्रमाण बाह्य वस्तु की सत्ता को नहीं सिद्ध कर सकता है, क्योंकि वह निराकार प्रमाण सर्व समान रूप से रहेगा । इसलिए वह प्रत्येक कर्म की व्यवस्था का कारण नहीं हो सकता है । साकार प्रमाण से चित्राकार ज्ञान सिद्ध होता है-अब यदि यह माना जाय कि बाहरी पदार्थों की सत्ता सिद्ध करने वाला प्रमाण आकार वाला है तो इससे नीलादि अनेक आकारों वाला एक चित्रज्ञान ही सिद्ध होता है । इस चित्रज्ञान से भिन्न जड़ पदार्थ की सिद्धि इस साकार प्रमाण से नहीं होती है, क्योंकि जड़ पदार्थ की व्यवस्था का कारण कुछ भी नहीं है । आकार विशिष्टज्ञान बाहरी जड़ पदार्थ की व्यवस्था का कारण नहीं है' - चित्राद्वैतवादी अपने कथन को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि आकार विशिष्ट ज्ञान को बाह्य पदार्थ की व्यवस्था का कारण नहीं माना जा सकता है । क्योंकि वह अपने आकार के अनुभवमात्र से कृतकृत्य हो जाता है । प्रमाणवार्तिक में धर्मकीर्ति ने कहा भी है-- यदि ज्ञान (बुद्धि) नोलादि रूप से नहीं है तो बाह्य पदार्थ के होने में क्या कारण (प्रमाण) है और यदि बुद्धि नीलादि रूप से है तो बाह्य पदार्थ के होने में क्या प्रयोजन है ? कहने का तात्पर्य यह है कि यदि बुद्धि (ज्ञान) अनीलादि रूप है, तो उसके द्वारा नील आदि बाह्य पदार्थ की सिद्धि कैसे होगी ? क्योंकि उसको सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण नहीं है । यदि ज्ञान नील आदि रूप है तो फिर बाह्य पदार्थों को मानने का कोई प्रयोजन नहीं है, अर्थात् उन्हें मानना निरर्थक है । क्योंकि नील आदि बाह्य आकार सम्याज्ञान में पाया जाता है । पूर्वभावी, उत्तरभावी एवं समकालभावी आकार विशिष्ट ज्ञान व्यवस्था नहीं कर सकता है ? - चित्राद्वैतवादी अपने पक्ष को सिद्ध करने के की सत्ता मानने वालों से जानना चाहते हैं कि यदि आकार विशिष्ट ज्ञान करता है तो बतलाना होगा कि प्रमेय से पहले उत्पन्न होने वाला ज्ञान व्यवस्था करेगा या उत्तर काल में होने वाला ज्ञान अथवा समभावी ज्ञान ? बाह्य पदार्थ की लिए बाह्य पदार्थों पदार्थ की व्यवस्था बाहरी पदार्थों की १. (क) न्याय कुमुदचन्द्र पृ०-१२४ । (ख) स्याद्वाद रत्नाकर पृ० १७२ । २. न चाकार विशिष्टज्ञानमेव तद्व्यवस्था हेतु, न्याय कुमुदचन्द्र, पृ० - १२४ | ३. घियोsनीलादिरूपत्वे बाह्योऽर्थः किन्निबन्धनः । घियो नीलादिरूपत्वे बाह्योऽर्थः किन्निबन्धन || २|४३३ । ४. तथाहि तद्वघवस्थापकं प्रमाणं कि-- समकालभावी वा ? स्याद्वाद रत्नाकर, पृ० १७२ (ख) न्या० कु० च०, १२५ । १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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