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श्रद्धेय पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री और उनकी
अप्रकाशित कृतियाँ
डा० कमलेश कुमार जैन* देवाधिदेव सुपार्श्वनाथ भगवान् की जन्मभूमि भद्रवनी ( भदैनी), वाराणसी में जिनमन्दिर से संलग्न स्याद्वाद महाविद्यालय का वह कक्ष, जिसमें स्वनामधन्य सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री बैठते थे, आज श्रद्धेय पूज्य पण्डितजी के महाप्रयाण के पश्चात सूना हो गया। यद्यपि वहाँ अन्य सभी भौतिक सामग्री विद्यमान हैं, किन्तु वातावरण में सजीवता घोलनेवाला यह चैतन्य महापुरुष अब वहाँ नहीं है, उस पर्याय में नहीं है ।
विगत दो-तीन दशकों से पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री और काशीस्थ श्री स्याद्वाद महाविद्यालय--दोनों पर्यायवाची बन गये थे और उन दोनों का वह अटूट सम्बन्ध आज भी जनजन के हृदय-पटल पर अंकित है। एक का स्मरण करते ही दूसरे का स्मरण स्वतः हो जाता है । स्याद्वाद विद्यालय के प्रति पण्डितजी का अनन्य प्रेम था । विद्यालय को अपनी सेवाएं देने के आरंभ से और प्राचार्य पद से सेवामुक्त होने के पश्चात् भी पण्डितजी विद्यालय को अपना मानते थे। यही कारण था कि प्रतिवर्ष पर्युषण पर्व, अष्टाह्निका पर्व और महावीर जयन्ती जैसे धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में भारत के कोने-कोने में जाकर प्रवचन आदि के माध्यम से समाज में जागृति लाते थे और लोगों को विद्यालय के लिये आर्थिक सहयोग करने हेतु प्रेरणा देते थे। फलस्वरूप विद्यालय के पास लाखों रुपये का ध्रौव्य फण्ड आज भी सुरक्षित है। श्रद्धेय पण्डितजी की इन्हीं सब विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए विद्यालय के संस्थापक एवं प्रथम छात्र पूज्य क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी ने उन्हें 'विद्यालय के प्राण' इस नाम से सम्बोधित किया था।
आज भारतवर्ष के कोने-कोने में जो जनविद्या एवं प्राकृत के विद्वान् दिखलाई दे रहे हैं, उनमें अधिकांश विद्वान् उनके शिष्य अथवा परम्परया शिष्य हैं। श्रद्धेय पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री को स्याद्वाद महाविद्यालय के प्राचार्य एवं अधिष्ठाता के रूप में तो प्रायः सभी लोग जानते हैं, किन्तु यह तथ्य बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि श्रद्धेय पण्डितजी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अन्तर्गत भारती महाविद्यालय में जैनदर्शन के प्राध्यापक के रूप में भी अपनी सेवाएँ अर्पित की हैं। जैनदर्शन एवं प्राकृत के वरिष्ठ अध्येता प्रो० डॉ० जगदोशचन्द्र जैन (बम्बई) ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रहकर ही पूज्य पण्डितजी से जैनदर्शन का विधिवत् अध्ययन किया था। आज जैन समाज के जाने-माने शीर्षस्थ विद्वानों में प्रो० खुशालचन्द्र
* जैनदर्शन प्राध्यापक, संस्कृत विधा धर्मविज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।
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