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युगपुरुष सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचंद्र शास्त्री
डॉ० फूल चन्द जैन प्रेमी* पूज्य गुरुवर्य पंडित कैलाशचन्द जी शास्त्री युगपुरुष थे। उनका अभाव लम्बे समय तक महसूस किया जाता रहेगा । श्रेष्ठ अध्यापक, विद्वान्, अनेक जैन ग्रन्थों के लेखक, सम्पादक एवं वक्ता के रूप में वे लगभग साठ वर्ष तक पूरे भारत में विशेषकर जैन समाज में छाये रहे। वक्तृत्व और लेखन दोनों कलाओं के बेजोड़ विद्वान् थे। जैन साहित्य का इतिहास, जैन-धर्म, जैन-न्याय आदि आपकी अनुपम कृतियाँ हैं। भारतीय इतिहास के बीच जैन-धर्म और श्रमण संस्कृति की प्राचीनता को प्रमाणित करने वाले विद्वानों में से एक थे। जयधवला, भगवती आराधना, ज्ञानार्णव गोमट्टसार, धर्मामृत आदि पचासों ग्रन्थों का विद्वतापूर्ण श्रेष्ठ सम्पादन आपकी गहनविद्वत्ता और जैनेतर शास्त्रों के गंभीर अध्ययन का परिचायक है।
दो दशकों से भी अधिक समय तक मेरा निकट का सम्पर्क रहा है। पाँच वर्षों तक श्री स्याद्वादमहाविद्यालय, वाराणसी में मुझे उनसे जैन-धर्मदर्शन के विभिन्न शास्त्रों को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। प्रत्येक वर्ष की कक्षा पंडित जी के पास प्रातः ६ बजे प्रारंभ होती थी। हमारी कक्षा में १०-१२ छात्र थे, कक्षा में पहुँचते ही सर्वप्रथम पिछले दिन का पढ़ाया हुआ, पाठ प्रत्येक छात्र को मौखिक सुनाना पड़ता था। जब कभी कोई नहीं सुना पाता तो एक-दो संक्षिप्त वाक्यों में ही ऐमी ताड़ना मिलती कि उसे कोई कभी भूल नहीं पाता। विद्यालय में यह वाचिक सजा ही एक चर्चा का विषय बन जाती थी। प्राचार्य के रूप में पं० जी का कार्यकाल विद्यालय का ‘स्वर्णयुग' कहा जाता है। कड़ा अनुशासन, प्रत्येक कार्य समय पर और नियमत: करना-कराना उनके स्वभाव का प्रमुख अंग था । यही कारण है कि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध सभी महाविद्यालों में स्याद्वाद महाविद्यालय एक आदर्श और सभी क्षेत्रों में अग्रणी महाविद्यालय था। विद्यालय का मामला हो या धर्म, सिद्धान्त, समाज एवं संस्कृति का, वे 'दो टूक' बात कहने और लिखने में कभी संकोच नहीं करते थे।
हम लोग जब कभी विद्यालय की अथवा अपनी कोई बात कहने पं० जी के पास जाते तब डर और संकोच के कारण आधी बातें तो कहना ही भूल जाते और जो कहपाते उनका जो उत्तर मिलता उससे संतुष्ट होकर लौट आते, कभी जवाब-सवाल का साहस ही न होता। पंडित जी को सदा सभी छात्रों के अच्छे भविष्य की चिन्ता बनी रहती । विद्यालय के छात्रों की स्याद्वाद प्रचारणी सभा के माध्यम से सभी छात्रों को प्रत्येक सप्ताह * अध्यक्ष, जैन दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी।
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