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________________ तक दिन-रात एक करके उन्होंने सेवा की । मैं उसकी प्रत्यक्षदर्शी रहा । परन्तु संयमधारियों से शिथिलाचार तथा चमत्कार को नमस्कार उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। महाराष्ट्र प्रान्तीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अधिवेशन में मैं उन्हें कचनेर, सोलापुर, वासिम, नेमिगिरि और हैदराबाद आदि स्थलों पर ले गया। हर जगह मैंने देखा कि यद्यपि वे कड़ा और दो टूक बोलते थे, परन्तु समाज ने आदर से उन्हें सुना। उनके प्रवचन हृदयग्राही, सरल और रोचक हुआ करते थे और सारे समाज में उन्हें सुनने की लालसा बनी रहती थी। वह लालसा बनी है किन्तु बोलने वाला अब हमारे बीच नहीं हैं। विद्वत्ता का समादर करना और उसके अवदान के प्रति मन में कृतज्ञता का भाव रखना, यही विद्वान् के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। पण्डित कैलाशचन्द्रजी उसके पात्र हैं । वे हमारे बीच नहीं हैं परन्तु अपनी रचनाओं के माध्यम से वे दीर्घकाल तक हमारे बीच रहेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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