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________________ सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाश चन्द्र जी स्वरूप चन्द जैन* लगभग एक वर्ष की कष्टप्रद बिमारी भोगने के बाद पिछले महीने रांची में श्रीमान् पं० कैलास चन्द शास्त्री सिद्धान्ताचार्य का निधन हो गया। उनके जाने से दिगम्बर जैन विद्वानों के बीच से एक सबल स्तम्भ गिर गया । पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा रोपे गये पौधों में से बहुत से इने-गने ही अब शेष बचे हैं । पण्डित जी के जाने से उनकी संख्या एक और कम हो गई। जैन विद्वानों में सम्पादन कला के मर्मज्ञ वैसे भी बहुत कम हैं, उस तालिका में से भी बहुत ऊपर अंकित रहने वाला एक नाम पण्डित कैलाश चन्द्र जी की मृत्यु साथ कट गया । बारह-तेरह वर्ष की अल्पवय में एक अबोध और उपद्रवी बालक को शरण देकर पूज्य वर्णी जी ने अपने समय के शीर्षस्थ विद्वान् के रूप में समाज को समर्पित किया, बस पण्डित जी के परिचय के लिए इतना कहना ही पर्याप्त था । उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार को और ज्ञान की आराधना को अपने जीवन का एकमेव लक्ष्य बनाकर जिस प्रकार अपने आप को एकाग्र मन से उस दिशा में लगा दिया वह हमारी पीढ़ी के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण कहा जा सकता है । बनारस विद्यालय में प्रधानाचार्य की गरिमा मण्डित आसंदी पर दीर्घकाल तक वे विराजमान रहे इसलिए आज के अधिकांश विद्वान् किसी न किसी प्रकार उनसे जुड़ते हैं और उनके द्वारा उपकृत हैं । प्रातःस्मरणीय पूज्य आचार्य - विद्यासागर जी के गुरु पूज्य आचार्य ज्ञानसागर जी ने भी इसी कालावधि में बनारस विद्यालय में अध्ययन किया था । सहजानन्द वर्णी के तो वे साक्षात् गुरु रहे । पण्डित जगन्मोहनलाल जी उनके बालसखा और सहपाठी हैं। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव सामने आए परन्तु इन दोनों विद्वानों की मैत्री और एक दूसरे के लिए मंगल- मनीषा • हमेशा बनी रही । जिन्हें पण्डित जी के द्वारा ज्ञानदान प्राप्त हुआ था ऐसे अनेक लोग आज अच्छी स्थिती में धार्मिक संस्थाओं, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में अपनी प्रतिभा का प्रसार कर रहे हैं । पण्डित जी का आगम ज्ञान बहुत सूक्ष्म एवं उच्चकोटि का था । धबल ग्रन्थों की टीका में, एक विज्ञ और सिद्धहस्त टीकाकार के नाते हमेशा याद किया जाएगा । " जैन न्याय", "जैन साहित्य का इतिहास पूर्व पीठिका" और "जैन साहित्य का इतिहास" पं० कैलाश चन्द जी द्वारा रचित ऐसे ग्रन्थ हैं जो अकेले ही किसी लेखक के लिए साहित्य के क्षेत्र में अमरता अर्जित करने में समर्थ हैं । * सम्पादक, गोम्मट वाणी, श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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