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________________ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और उनकी अमरकृति 'साकेत' ____ हरिकिशोर प्रसाद सिंह समस्त साहित्यिक कृतियों में 'साकेत' को अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई है। इसका प्रमुख कारण तो यह है कि इसका कथानक राम की वह पावनी कथा है, जो चिरकाल से भारतवासियों का कण्ठहार रही है। इसी कथा के ग्रहण किये जाने के कारण 'साकेत' में उदात्त चरित्र-चित्रण हुआ है। कथानक तथा चरित्रों के अंकन में नूतन उद्भावनाएं होने से 'साकेत' का महत्व असन्दिग्ध रूप में बढ़ गया है। इसकी तीसरी विशेषता गार्हस्थ जीवन का भव्य चित्रण है, चौथी विशेषता के रूप में इसका विरह-वर्णन भी कम हृदयद्रावक नहीं है । प्रकृति-चित्रण में परम्परा तथा नूतनता का समन्वय 'साकेत' की पांचवीं विशेषता है। भारतीय संस्कृति के दिव्य चित्रों का अंकन इसकी एक अन्य बहुत बड़ी विशेषता है। अपनी इन्हीं सब विशेषताओं के कारण 'साकेत' को हिन्दी-साहित्य के सफल महाकाव्यों में स्थान प्राप्त हुआ है। 'विशाल भारत' में एक समालोचक ने 'साकेत' के विषय में लिखा था-"गोस्वामी तुलसीदास जी की रामायण के बाद रामचरित को इतने विशद रूप में शायद ही किसी हिन्दी कवि ने गाया हो । 'साकेत' का प्रकाशन वास्तव में हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण घटना है ।” अब यहाँ पर हम 'साकेत' के विविध पक्षों पर कुछ विस्तार से विचार करेंगे। सर्वप्रथम उसकी कथावस्तु को ही ले लिया जाय । साकेत की कथावस्तु-'साकेत' घटना प्रधान महाकाव्य न होकर चरित्र प्रधान महाकाव्य है। प्रथम दृश्य में उर्मिला और लक्ष्मण के मधुरतम दाम्पत्य जीवन का अंकन है। यहाँ पर हम उमिला की वाक्पटुता से परिचित होते हैं । यहाँ उसके शब्दों में विनोद का प्राधान्य है। इसके पश्चात् विविध पात्रों के वियोग का हृदय विदारक दृश्य है। यहाँ दशरथ की मूळ, कौशल्या और सुमित्रा की वेदना तथा सीता के वन-गमन का निश्चय वर्णित है। इनके उपरान्त कवि उमिला पर दृष्टिपात करता है। तदनन्तर सुमन द्वारा वल्कल लाये जाने पर सीता उन्हें धारण करना चाहती है। राम सीता को वल्कल धारण करने से रोकना चाहते हैं, किन्तु सीता यह कहकर कि 'मेरी यही सहमति है, पति ही पत्नी की गति है' वल्कल पहनती हैं। सीता की इस प्रकार की उक्तियों से उमिला की स्थिति और गहन हो जाती है। सीता और उर्मिला ने गार्हस्थ की एकत्र ही शिक्षा पायी थी, अतः जब सीता राम के साथ वन जा सकती है तो उमिला क्यों नहीं, किन्तु नहीं उर्मिला जानती है कि मेरे वन जाने से मेरे प्राण *अध्यक्ष, प्राकृत विकास परिषद्, प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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