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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की काव्य-यात्रा
हाय ! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण-सुवर्ण खरा ? सूख जायगा मेरा उपवन, जो है आज हरा ? रिक्त मात्र है क्या सब भीतर, बाहर भरा-भरा ? कुछ न किया, पर सूना भव भी यदि मैंने न तरा ? ( यशोधरा बुद्ध का चिंतन )
सिद्धार्थ कुमार के महाभिनिष्क्रमण से उनकी पत्नी यशोधरा के दुःख-दर्द, विरह की पीड़ा को गुप्तजी की सधी हुई लेखनी ने किती सुकुमारता से आँका है
प्रियतम ! श्रुतिपथ से आये ।
तुम्हें हृदय में रख कर मैंने अधर कपाट लगाये । मेरे हास - विलास ! किन्तु क्या भाग्य तुम्हें रख पाये ? दृष्टि मार्ग से निकल गये थे तुम रसमय मनभाये । प्रियतम तुम श्रुतिपथ से आये ।
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यशोधरा क्या कहे अब, रहो कहीं भी छाये,
मेरे ये निःश्वास व्यर्थ यदि तुमको खींच न लाए ॥ प्रियतम ! तुम श्रुतिपथ से आये ।
बुद्ध के प्रति यशोधरा के निर्गत ये मर्मस्पर्शी उद्गार कितने कवित्वमय हैं जाओ नाथ ! अमृत लाओ तुम मुझमें मेरा पानी, चेरी ही मैं बहुत तुम्हारी, मुक्ति तुम्हारी रानी । प्रिय तुम तपो, सहूँ मैं भरसक, देखूं बस हे रानीकहाँ तुम्हारी गुण गाथा में मेरी करुण कहानी ? तुम्हें अप्सरा विघ्न न व्यापे यशोधरा करधारी । आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा, अब है मेरी बारी ॥
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चेरी भी वह आज कहाँ कल थी जो रानी; दानी प्रभु ने दिया उसे क्यों मन यह मानी ? अबला जीवन, हाय ! तुम्हारी यही कहानी - आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।
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यह भी एक अद्भुत तथ्य है कि मैथिलीशरण के अन्तर का कवि वाल्मीकि के कौञ्चवध की करुण घटना के समान उर्मिला के हृदय की पीड़ा-अन्तर्दाह के गीत सुलगाता
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