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________________ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की काव्य-यात्रा 157 देशभक्ति और उच्चतर उदात्त मानवीय भावनाओं के अद्भुत सामञ्जस्य के कारण वे हिन्दी के प्रतिनिधि कवि और राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हो गये, क्योंकि उनकी कविता में पराधीन राष्ट्र की आत्मा का, सुख-दुःख का आनन्द और विषाद का स्वर गूंज उठा भगवान् भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती। उनका पहला लघु प्रबन्ध काव्य खड़ी बोली में १९०९ ई० में प्रकाशित हुआरंग में भंग । राजस्थान की शौर्यगाथा से ओतप्रोत, हिन्दुत्व के गौरव से महिमा मण्डित । स्वयं गुप्तजी के अनुसार जब 'पूर्वदर्शन' नामक उनकी काव्यकृति छपी तो राजा रामापाल सिंह और स्वयं आचार्य द्विवेदीजी ने गुप्तजी को अनुप्रेरित किया कि देश के युवकों में देशानुराग उत्पन्न करने वाली प्रशस्त काव्यकृति रची जाय । आचार्य की प्रेरणा और अन्तर की अनुभूति से आन्दोलित हो गुप्तजी ने :९१२ ई० में 'भारत-भारती' जैसी महत्तर प्रेरक कृति के सृजन का गौरव पाया। पराधीन भारत में देश के गौरव-गान और पुनरुत्थान का उद्घोष कितना कठिन था । भारत-भारती को एक मूल पॅक्ति यों थी। यदि जन्म लेते थे महात्मा भीष्म' तुल्य कभी यहाँ, तो जन्मते हैं 'तिलक' जैसे धीर-वीर अभी यहाँ । इस तिलक' के प्रयोग पर भारी आपत्ति प्रकट गयी तो बहुत सोच-समझकर उसके बदले 'लोकमान्य' शब्द रखा गया। आचार्य द्विवेदीजी के परामर्श पर विवशतापूर्वक यह संशोधन स्वीकार किया गुप्तजी ने । परिवर्तित रूप यों हुआ--- तो जन्मते हैं कुछ ढवत लोकमान्य अभी यहाँ । इतनी सतर्कता बरतने पर भी तब पराधीन भारत के सहन-सहस्र लोग 'भारतभारती' की सहज प्रवाहमय देशगाथा को गा-गाकर पढ़ते और सभाओं में व्याख्यान देते । 'भारत-भारती' देश में उठतो हुई क्रान्ति की ज्वारभाटा का प्रतीक वर्षों तक बनी रही। बिहार और मध्यप्रदेश में तो स्कूलों में प्रचलित उसके ‘विषय के पाठ पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 'भारत-भारती' की भाषा में सादगी थी, सफाई थी और थी प्रवाहमयता, जो किस सहृदय भारतीय युवक को मुग्ध न कर ले । भावों में तेज था, ओज था, पर काव्यात्मक सौन्दर्य नहीं। उसका निरतंकृत सहज प्रवाहमय रूप ही उसकी शक्ति है । खड़ी बोली के परिमार्जन का वह काल था, अलंकरण और लालित्य सृजन का नहीं । अपनी उसी दुर्दयनीय भाव सम्पदा के कारण 'भारत-भारती' जैसी उद्बोधनात्मक कृति सारे उत्तर भारत का कण्ठहार हो गयी। इसी एक कृति ने गुजी को समस्त उत्तर भारत में ही नहीं, जहाँ भी हिन्दी भाषी लोग हैं, उनके बीच उन्हें राष्ट्रीय चेतना के गायक कवि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। 'भारत-भारती खड़ी बोली की कविता का ज्योतिस्तम्भ हो गया। 'भारत-भारती' तथा अन्य आख्यान काव्यों के रचनाकाल के अन्तराल में गुप्तजी ने 'विरहिणी ब्रजांगना' और 'मेघनाद वध' जैसे बंगला के ( माइकेल मधुसूदन दत्त ) काव्य का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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