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________________ 120 Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 (४) अश्लील अर्थात् चरित्रहीन न हो, (५) विशील, (६) खान-पान का लोलुपी न हो, (७) अक्रोधी हो और (८) सत्य में सदा अनुरक्त हो । इन आठ स्थितियों में ही व्यक्ति शिक्षाशील होता है । आवश्यक नियुक्ति में सुयोग्य शिष्य के बारे में कहा गया है कि वह गुरु के पढ़ाये हुए विषय को ध्यानपूर्वक सुनता है, प्रश्न पूछता है, ध्यानपूर्वक उत्तर सुनता है और अर्थ ग्रहण करता है, उस पर चिन्तन करता है, उसकी प्रामाणिकता का निश्चय करता है, उसके अर्थ को याद रखता है और तदनुसार आचरण करता है। इसी प्रकार आदिपुराण में भी विनीत शिक्षार्थी के आठ लक्षण निरूपित किये गये हैं । जो इस प्रकार हैं (१) शुश्रूषा-सत्कथा का सुनने की इच्छा होना शुश्रूषा गुण है । (२) श्रवण-सुनना। (३) ग्रहण-किसी भी विषय को समझकर ग्रहण करना । (४) धारण-पठित विषय को बहुत समय तक या सदैव स्मरण रखने की क्षमता। (५) स्मृति-पिछले समय ग्रहण किए हुए उपदेश आदि का स्मरण करना । (६) ऊह-तर्क द्वारा पदार्थ के स्वरूप के विचार करने की शक्ति होना । (७) अपोह-हेय वस्तुओं को छोड़ना अपोह है । (८) निर्णीत-युक्ति द्वारा पदार्थ का निर्णय करना निर्णीत गुण है । विनीत शिक्षार्थियों में उपर्युक्त सभी गुणा का होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि विनय ही विद्यार्थी जीवन का मूल है। विनय से ही विद्यार्थी को यश, कीर्ति, ज्ञान, प्रतिष्ठा आदि प्राप्त होते हैं। अविनीत शिक्षार्थी के लक्षण अविनीत शिक्षार्थी के चौदह प्रकार के दोष बताये गये : (१) बार-बार क्रोध करना, (२) क्रोध को लम्बे समय तक रखना, (३) मित्रता को ठुकराना, (४) ज्ञान प्राप्त कर अहंकार करना, (५) स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार करना, (६) मित्रों पर क्रोध करना, (७) प्रिय मित्रों की भी परोक्ष में शिकायत करना, (८) असम्बद्ध प्रलाप करना, (९) द्रोह करना, (१०) अभिमान करना, (११) रस लोलुप होना, (१२) अजिते १. अह अट्ठहि ठाणेहि, सिक्खासीले त्ति वुच्चई । अहस्सिरे सया दन्ते, न य मम्ममुदाहरे ॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले ति वुच्चई ॥ वही-११।४-५ । २. आवश्यक नियुक्ति-२२ । ३. शुश्रूषा श्रवणञ्चैव ग्रहणं धारणं तथा । स्मृत्यूहा पोह निर्णीतो श्रोतुरष्टौ गुणान् विदुः॥ आदिपुराण-१११४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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