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________________ 102 Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 व्युत्पन्न हैं और न संस्कृत कोशों में निबद्ध हैं तथा लक्ष्णाशक्ति के द्वारा भी जिनका अर्थ प्रसिद्ध नहीं हैं, ऐसे शब्दों का संकलन इस कोश में करने की प्रतिज्ञा आचार्य हेमचन्द्र ने की है।' देशी शब्दों में क्रियावाचक शब्द भी हैं। इन क्रियावाचक शब्दों को वैयाकरण धात्वादेश कहते हैं। प्राकृत धात्वादेश से तात्पर्य संस्कृत धातु के स्थान पर बोल-चाल की धातुएँ हैं । इनका मूलरूप संस्कृत में नहीं मिलता किन्तु अधुनिक भारतीय भाषाओं की धातुएँ इनसे पूर्णतः मिलती-जुलती हैं । देशी शब्द से इनकी सार्थकता प्रमाणित है । प्राकृत प्रकाश (तृतीय शतक) तथा सिद्धहैम व्याकरण प्राकृत भाग (द्वादश शतक) में ऐसे धात्वादेश पर्याप्त परिमाण में प्राप्त होते हैं, जो बज्जिका की क्रियाओं के बीज रूप हैं। ये धातुएँ तथा शब्द भी, जो अज्ञात-व्यत्पत्तिक अथवा देशी हैं, प्रान्तीय तथा स्थानीय रहे होंगे. जो बाद में सार्वदेशिक प्राकृत में सम्मिलित कर लिए गये। हेमचन्द्र के व्याकरण के इसे धात्वादेशों को देखने से यह ज्ञात होता है कि प्रायः उनका कोई न कोई रूप पूर्वी प्रान्त के शब्दों तथा धातुओं में जिनमें आधुनिक भाषा बज्जिका भी एक है, प्राप्त हो जाता है। हेमचन्द्र ने एक संस्कृत धातु के कई आदेश बतलाये हैं जो उत्तरी भारत के विभिन्न क्षेत्रों की लोकभाषा या प्रचलित साहित्य में प्राप्त थे। हेमचन्द्र अपने संग्रह देशी नाममाला में धात्वादेश को देशी नहीं मानने हुए भी उन्हें उसमें स्थान दिया है। ऐसा उन्होंने अपने पूर्ववर्ती कोशकारों के पथानुसरण के क्रम में किया है। धात्वादेशों तथा देशी शब्दों दोनों की व्युत्पत्ति का पता नहीं है। शब्दों में जो अव्युत्पन्न होते हैं, वे देशी के तथा धातुओं में जो अव्युत्पन्न हैं, वे धात्वादेश के नाम से अभिहित हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्धहमव्याकरण के प्राकृत भाग के धातु-प्रकरण में संस्कृत धातु के अर्थ में लोकप्रयुक्त क्रिया की धातुओं को संगृहीत किया तथा लोकप्रयुक्त शब्दों का, जिन्हें उन्होंने देशी कहा, संग्रह देशी नाम माला के नाम से किया । हेमचन्द्र के आठ सौ वर्ष पूर्व वररुचि ने प्राकृत प्रकाश नामक व्याकरण में ऐसी आतुओं विवेचन किया है, जिन्हें धात्वादेश कहा जा सकता है । ऐसी धातुओं के आधार पर तत्कालीन लोकप्रयुक्त क्रियारूपों का विवेचन किया गया था। प्राकृतप्रकाश और सिद्ध हैम प्राकृतव्याकरण के बीच आठ सौ वर्षों का अन्तराल था। प्राकृत प्रकाश के तथा अन्य प्राकृत धात्वादेशों की संख्या हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण में बढ गयी । इस अवधि में लोक भाषा विकसित हुई । भाषाविदों के द्वारा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की धातुओं के वर्गीकरण का प्रयास किया गया है । ग्रियर्सन, डॉ० सुनीति कुमार चटर्जी, डॉ. उदय नारायण तिवारी, डॉ० भोला नाथ तिवारी आदि के द्वारा हिन्दी संघ की भाषाओं की धातुओं के वर्गीकरण में कोई १. देशीनाम माला, १.३-४ तथा डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, प्राकृत भाषा और साहित्य का इतिहास, (१९६६), पृ०-५३९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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