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________________ जैन सरस्वती की एक अनुपम प्रतिमा का कलात्मक सौन्दर्य 53 विविध एवं पर्याप्त सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हैं। इन्हीं देवियों के पार्श्व में नृत्यमुद्रा में चमर-धारी देवियाँ हैं। एक हाथ में चमर ढोल रही हैं तथा दूसरा हाथ कटि पर रखा हुआ है। ये दोनों भी काफी वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हैं। धुमावदार ऊँचा किरीट-मुकुट धारण किये हैं । मोतियों की माला, हार, कुण्डल, कंकण, भुजबंद तथा पैरों में पायल पहने हुए हैं। कटि में मोतियों की लड़ियों से साड़ी (धोती) कसी हुई अंकित हैं। पादपीठ पर नीचे जहाँ हंस अंकित है उसके दायें कोने पर दाढ़ी युक्त पुरुष तथा बायें कोने पर जूड़ा बाँधे स्त्री आकृति अंकित हैं। दोनों ही करबद्ध रूप में वन्दना की मुद्रा में बैठे हैं । दोनों के मुख पर सरस्वती के चरणों में अपना समर्पणभाव व्यक्त हो रहा है । इससे ऐसा लगता है कि ये इस मूर्ति के दानदाता (निर्माता) पति-पत्नी रूप श्रावक-युगल हैं। भारत में स्वतंत्र उदाहरण के रूप में जैन सरस्वती की जितनी भी खड्गासन मूर्तियाँ देखने में आयी हैं प्रायः सभी में इस तरह के श्रावक-युगल प्रदर्शित किये गये हैं। ___ इस प्रकार परिकरयुक्त सरस्वती की यह मूर्ति निःसन्देह विलक्षण आकार में तराशी गई एक उत्कृष्ट कलाकृति है। ___ एक कहावत प्रसिद्ध है कि-"कवि की जीह्वा में सरस्वती रहती है तो शिल्पी के हाथों में ।" इसे ही चरितार्थ करने हेतु किसी अज्ञात नामा शिल्पी को सजावट के प्रेम ने देवी को विकसित कमलासन पर तराशने के लिए विवश किया । इस मूर्ति की अनेक विशेषताओं में से एक यह भी है कि पादपीठ पर उत्कीर्ण हंस के नीचे सामने वाले सपाट भाग में तीन पंक्तियों का स्पष्ट लेख है, जिसमें मूर्ति के प्रतिष्ठित होने का समय, दिगम्बर जैन परम्परा में सम्बद्ध माथुर संघ दानदाता (निर्माता) आदि के विवरणों के साथ "सरस्वती" शब्द का उल्लेख है । जबकि इस प्रकार के अन्य उदाहरणों में शायद ही स्पष्ट और पूर्ण लेख उल्लिखित हों । लेख इस प्रकार है:-प्रथम पंक्ति संवत् १२१९ वैशाख सुदी ३,शुक्र ॥ श्री माथुर संघे ॥ द्वितीय पंक्ति-आचार्य श्री अनन्तकीर्ति भक्त श्रेष्ठी बहुदेव पत्नी तृतीय पंक्ति-आशा देवी सकुटुम्ब सरस्वतीम् प्रणमति ।। शुभमस्तु । इस लेख से ज्ञात होता है कि श्री माथुर संघ के आचार्य श्रीअनन्तकीर्ति के भक्त श्रावक सेठ वासुदेव की पत्नी आशादेवी सपरिवार सरस्वती की सभक्ति वन्दना करती हैं । लेख के अन्त में सभी के कल्याण की कामना की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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