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________________ 142 . Vaishali Institute Research Bulletin No. 4 धारणा बौद्धों को स्वीकार नहीं है। यथार्थवादी मानते हैं कि सत् का अवस्थान्तर तो होता है, अर्थान्तर नहीं । बौद्ध पूछते हैं कि यह अवस्थान्तर अर्थ (वस्तु) से भिन्न है या अभिन्न । यदि अभिन्न है और अर्थान्तर नहीं होता तो कहना होगा कि कोई परिवर्तन नहीं होता। परिवर्तन भ्रम मात्र है। और यदि अवस्था परिवर्तन अर्थ से भिन्न है तो फिर वस्तु परिवर्तित ही नहीं हुई । 'वस्तु का परिणाम' यह भ्रामक अभिव्यक्ति है। वस्तुत: परिणाम या परिवर्तन प्रतिक्षण अर्थान्तर होना है; एक वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु का होना है। ____ बौद्ध दर्शन में परिवर्तन की व्याख्या का प्रमुख सिद्धान्त प्रतीत्यसमुत्पाद है । क्षणिकवाद को इसका ताकिक परिणाम कहा जा सकता है। प्रतीत्यसमुत्पाद का आशय है कि प्रत्येक वस्तु अपने-अपने कारणों से उत्पन्न होती है। प्रत्येक वस्तु कार्य है जिसकी उत्पत्ति परतः होती है क्योंकि यादृच्छिक उत्पत्ति असम्भव है। जो उत्पन्न होता है वह नष्ट भी होता है-यह अनुभव सर्वजन प्रसिद्ध है। अब बौद्ध पूछते हैं कि वस्तुएं नश्वरत्वभाववाली उत्पन्न होती हैं या अविनश्वर स्वभाववाली ? यदि वस्तुओं की उत्पत्ति अविनश्वर स्वभाव सहित होती है—ऐसा माना जाय तो फिर घट, पट आदि किसी भी वस्तु का विनाश नहीं होगा । लेकिन यह तो अनुभव से खंडित होने वाली बात है। इसलिए वस्तुएं अपने कारणों से विनश्वर स्वभाववाली उत्पन्न होती हैं। जो विनश्वर स्वभाववाला है उसे तुरन्त विनष्ट हो जाना चाहिए । वस्तु यदि उत्पत्ति के अनन्तर ही नष्ट नहीं हो तो फिर कभी भी नष्ट नहीं हो और वह नित्य ही हो जाये। अतः उत्पन्न होने के अनन्तर ही वस्तु नष्ट हो जाती है । __ नैयायिक इससे सहमत नहीं हैं। वे यह तो स्वीकार करते हैं कि सब कार्य अनित्य होते हैं परन्तु उन्हें अनिवार्यत: क्षणिक नहीं मानते । घट को जब कोई मुद्गर से पीटता है तब उसका विनाश होता है। नैयायिक वस्तु के नष्ट होने को एक कार्य मानते हैं । विनाश अभाव रूप कार्य है और इसके लिए निमित्त कारण की अपेक्षा मानते हैं। बौद्ध वस्तु के नष्ट होने पर किसी प्रध्वंसाभावरूप पदार्थ की उत्पत्ति नहीं मानते । सत् क्षणक्षयी होने के कारण उत्पत्ति के अनन्तर अपने आप दूसरे क्षण को उत्पन्न करके चला जाता है। बौद्ध नैयायिकों के पक्ष की आलोचना में पूछते हैं कि मुद्गर घट का अभाव करता है । यहाँ इस अभाव की उत्पत्ति घट से भिन्न होती है या अभिन्न ? (अ) यदि घट का अभाव घट से भिन्न उत्पन्न होता है तो उससे घट कैसे नष्ट होगा? नहीं होगा। ५. देखें Buddhist Logic, भाग I, पृ० ९७, डोवर प्रकाशन, न्यूयार्क । ६. वक्ष्यते चोत्पत्तिमंतश्च परतः । सत्ताया आकस्मिकत्वायोगात् । प्रमाणवात्तिक (स्वार्थानुमानपरिच्छेद) स्ववृत्तिटोका पृ० ५०५. सं. डा० राहुल सांस्कृत्यायन् । ७. षड्दर्शनसमुच्चय में पृ० ४७ पर रत्नकीर्ति द्वारा उद्धृत एक अज्ञातकर्त्तक श्लोक का अर्थ । १९७०, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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