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________________ 140 Vaishali Institute Research Bulletin No. 4 'कूटस्य नित्य' से तात्पर्य है जो बिल्कुल भी न बदले, परिवर्तित न हो । तब इसमें 'अर्थक्रिया' घटित नहीं हो सकती । अब हमारे पास दो आधारवाक्य हैं : (१) सत् वही हो सकता है जो अर्थक्रियाकारी हो। (२) कूटस्य नित्य अर्थक्रियाकारी नहीं है । इससे यह फलित हो जाता है कि (३) कूटस्थ नित्य सत् है। नित्य पदार्थ की कल्पना अब परिणामी रूप में की जा सकती है। इसका मतलब होगा कि पदार्थ की अवस्थाएँ बदलती हैं लेकिन पदार्थ स्वयं न तो उत्पन्न होता है न नष्ट होता है। सत एक ही रहकर भिन्न-भिन्न निमित्तों के मिलने पर भिन्न-भिन्न अर्थ क्रियाएँ कर सकता है। बौद्धों ने अपनी ओर से ऐसे नित्य पदार्थ को भी अर्थक्रियारहित सिद्ध किया है। सत् के अर्थक्रिया लक्षण को स्वीकार करने में मूल कठिनाई यह है कि तब नित्य त.वों को कैसे स्वीकार किया जा सकता है ? नैयायिक इसीलिए सत् के इस लक्षण को स्वीकार नहीं करते। इसके विपरीत जैन दार्शनिकों ने यह दिखाने को चेष्टा की है कि नित्य पदार्थ 'अर्थक्रियाकरी' हो सकता है और हम सत् के अर्थक्रियाकारित्व लक्षण को स्वीकार कर सकते हैं। आगे हम क्रम से बौद्धों और जैनों की 'अर्थक्रियाकारित्व' संबंधी व्याख्याओं को प्रस्तुत करेंगे। (१) कोई पदार्थ नित्य है, उसका मतलब है कि वह भूत, भविष्यत् और वर्तमान-तीनों कालों में रहता है । वह सत् है । अतः वह प्रतिक्षण कोई न कोई अर्थक्रिया भी करता है । ___अब माना कि नित्य पदार्थ (N.) की वर्तमान क्षण to पर अर्थक्रिया xo है। अतीत के क्षणों (क्रम से) t - 1, t - 2, t - .."पर N, की अर्थक्रियाएँ थी (क्रम से) x - 1, x - 2, x - 3, उसी तरह से माना गया नित्य पदार्थ (N) भविष्य में 1 पर xi,t, पर x., आदि अर्थ क्रियाएँ करेगा। इस प्रकार से माना जा सकता है कि नित्य पदार्थ अर्थक्रियाकारी हो सकता है । और इसका खंडन निम्न प्रकार से करते हैं :(१) कोई पदार्थ अर्थ क्रिया या तो कम से कर सकता है या युगपत् । (२) माना नित्य पदार्थ कम से अर्थक्रिया करता है। अर्थात् वह to पर ox, t, पर Xi, t पर x,....."अर्थ क्रियाएँ करता है। तब प्रश्न उठता है कि to समय पर पदार्थ में th, tg,""""आदि उत्तरक्षणों पर होने वाली x, x,."""आदि अर्थक्रियाओं की सामर्थ्य है या नहीं? पहला विकल्प : to समय पर पदार्थ में उत्तरक्षणों में होने वाली अर्थक्रियाओं की सामर्थ्य नहीं है। अर्थात् भिन्न-भिन्न समयों में पदार्थ में भिन्न अर्थक्रियाओं को करने की सामर्थ्य होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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