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Vaishali Institute Research Bulletin No. 4
१. जनपद सत्य—जिस देश में जो भाषा या शब्द व्यवहार प्रचलित हो, उसी के द्वारा वस्तु तत्त्व का संकेत करना जनपद सत्य है । एक जनपद या देश में प्रयुक्त होने वाला वही शब्द दूसरे देश में असत्य हो जावेगा। बाईजी शब्द मालवा में माता के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि उत्तर प्रदेश में वेश्या के लिए। अतः बाईजी से माता का अर्थबोध मालव के व्यक्ति के लिए सत्य होगा, किन्तु उत्तर प्रदेश के व्यक्ति के लिए असत्य ।
२. सम्मत सत्य- वस्तु के विभिन्न पर्यायवाची शब्दों का एक ही अर्थ में प्रयोग करना सम्मत सत्य है । जैसे-राजा, नृप, भूपति आदि । यद्यपि व्युत्पत्ति की दृष्टि से ये अलग-अलग अर्थों के सूचक हैं। जनपद सत्य और सम्मत सत्य प्रयोग (Convention) से अवधारित अर्थ बोध के सूचक हैं।
३. स्थापना सत्य-शतरंज के खेल में प्रयुक्त विभिन्न आकृतियों को राजा, वजीर आदि नामों से सम्बोधित करना स्थापना सत्य है । यह संकेतीकरण का सूचक हैं ।
४. नाम सत्य- गुण निरपेक्ष मात्र दिये गये नाम के आधार पर वस्तु का सम्बोधन करना यह नाम सत्य है। एक गरीब व्यक्ति भी नाम से "लक्ष्मीपति" कहा जा सकता है, उसे इस नाम से पुकारना सत्य है। यहाँ भी अर्थबोध संकेतीकरण के द्वारा ही होता है।
५. रूप सत्य–वेश के आधार पर व्यक्ति को उस नाम से पुकारना रूप सत्य है, चाहे वस्तुतः वह वैसा न हो, जैसे-नाटक में राम का अभिनय करने वाले व्यक्ति को "राम" कहना या साधुवेशधारी को साधु कहना।
६. प्रतीत्य सत्य-सापेक्षित कथन अथवा प्रतीति को सत्य मानकर चलना प्रतीत्य सत्य है। जैसे अनामिका बड़ी है, मोहन छोटा है आदि। इसी प्रकार आधुनिक खगोल विज्ञान की दृष्टि से पृथ्वी स्थिर है, यह कथन भी प्रतीत्य सत्य है, वस्तुतः सत्य नहीं ।
७. व्यवहार सत्य-व्यवहार में प्रचलित भाषायी प्रयोग व्यवहार सत्य कहे जाते हैं, यद्यपि वस्तुतः वे असत्य होते हैं-घड़ा भरता है, बनारस आ गया, यह सड़क बम्बई जाती है। वस्तुतः घड़ा नहीं पानी भरता है, बनारस नहीं आता, हम बनारस पहुँचते हैं । सड़क स्थिर है वह नहीं जाती है, उस पर चलने वाला जाता है।
८. भाव सत्य-किसी एक गुण की प्रमुखता के आधार पर वस्तु को वैसा कहना भाव सत्य है । जैसे—अंगूर मीठे हैं, यद्यपि उनमें खट्टापन भी रहा हुआ है।
९. योग सत्य-वस्तु के संयोग के आधार पर उसे उस नाम से पुकारना योग सत्य है; जैसे-दण्ड धारण करने वाले को दण्डी कहना या जिस घड़े में घी रखा जाता है उसे घी का घड़ा कहना ।
१०. उपमा सत्य-यद्यपि चन्द्रमा और मुख दो भिन्न तथ्य हैं और उनमें समानता भी नहीं है, फिर भी उपमा में ऐसे प्रयोग होते हैं-जैसे चन्द्रमुखी, मृगनयनी आदि । भाषा में इन्हें सत्य माना जाता है।
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