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________________ मलयसुन्दरीचरियं को प्राकृत पाण्डुलिपियाँ* डा. प्रेम सुमन जैन प्राकृत साहित्य की अप्रकाशित रचनाओं में 'मलयसुंदरीचरियं' नामक कथा एक महत्त्वपूर्ण कृति है । इस कथा की प्रसिद्धि इसी बात से प्रकट होती है कि मूल प्राकृत कृति अप्रकाशित होने पर भी संस्कृत, गुजराती एवं हिन्दी में इस कथा के कई रूपान्तरण प्रकाशित हो चुके हैं। मलयसुन्दरिकथा का प्रयम संस्कृत रूपान्तरण वि० सं० १४५६ में आगमगच्छ के जयतिलक ने किया। इस ग्रन्थ में चार प्रस्ताव एवं कुल २३९० श्लोक हैं। यह कृति सन् १९१६ में देवचन्द लालभाई जैन पुस्तक उद्धार ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुई है। इसका चतुर्थ संस्करण सन् १९५३ में विजयदानसूरीश्वर ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुआ है। इसका गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है । पल्लीगच्छ के शान्तिसूरि ने १४५६ में ५०० ग्रन्था ग्रप्रमाण संस्कृत पद्य में मलयसुन्दरी चरित लिखा है। इस संस्कृत संस्करण का जर्मन अनुवाद हर्टल ने 'इण्डिशमार्सेन' में १९१९ ई० में प्रकाशित किया । मलयसुन्दरीचरित्र संस्कृत-गद्य में भी लिखा गया है। अंचलगच्छ के माणिक्पसुन्दर ने सं० १४८४ में गुजरात के राजा शंख की सभा में 'महाबलमलयसुन्दरीचरित' की रचना कर उसे सुनाया था। यह कृति १९१८ ई० में बम्बई से प्रकाशित हो चुकी है। इसका दूसरा संस्करण १९६४ ई० में अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है। पिप्पलगच्छ के धर्मदेवगणि के शिष्य धर्मचन्द ने 'मलपसुन्दरीकथो द्वार' की रचना संस्कृत में की है। एक अज्ञातकर्तृक संस्कृत 'मलयसुन्दरीचरित' भी उपलब्ध है। मुनि श्री तिलक विजय के द्वारा १९३७ ई० में मलयसुंदरीचरित का हिन्दी अनुवाद भी दिल्ली से प्रकाशित किया गया है। इस ग्रन्थ के इतने प्रकाशन होने पर भी मूल प्राकृत ग्रन्थ का अभी तक प्रकाशन नहीं हो सका है और न ही अभी तक इस ग्रन्थ के कर्ता का पता चला है। जबकि संस्कृत रूपान्तरण के सभी कवियों ने यह स्वीकारा है कि वे प्राकृत कवि के द्वारा लिखित मलयसुन्दरीचरित को संस्कृत में प्रचारित कर रहे हैं । यथा * अ. भा. प्राच्यविद्यासम्मेलन के जयपुर अधिवेशन (१९८२) में पठित निबन्ध । १. चौधरी, गुलाबचन्द, जनसाहित्य का बृहत् इतिहास, भा० ६ २. विन्तरनित्स, हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, भाग-२, पृ० ५३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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