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________________ बज्जिगणराज्य : पालि साहित्य के आलोक में ___33 इसमें सन्देह नहीं कि लिच्छवियों के हृदय में बुद्ध के प्रति मात्र सम्मान ही नहीं, अपार स्नेह एवं श्रद्धा भी थी। बुद्ध की प्रशंसा में मात्र एक गाथा का पाठ करनेवाले पिगियानि भिक्ष को पांच सौ लिच्छवियों में से प्रत्येक द्वारा एक-एक चीवर दान में दिया जाना इस बात की पुष्टि करता है। इतना ही नहीं, यहाँ तक कि धनुष-वाण लेकर महावन में घूमनेवाले लापरवाह लिच्छविकुमार भी बुद्ध को देखते ही धनुष-वाण का त्याग कर अञ्जलिबद्ध हो उनके उपदेश सुनने हेतु प्रस्तुत हो जाते थे। इस प्रकार बुद्ध में असीम श्रद्धा एवं सम्मान का भाव रखनेवाले महत्त्वपूर्ण लिच्छवियों में महानाम, सही, भद्दिय, सालह, अभय, नन्दक, महालि तथा उग्ग आदि का नाम लिया जा सकता है। भिक्षुणी बननेवाली लिच्छवि महिलाओं में अम्बपालि, जेन्ती, सीहा तथा वासेट्ठी एवं भिक्षु बननेवाले लिच्छवि पुरुषों में अजनवनिय, वज्जिपुत्त तथा सम्भूत के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके संन्यास जीवन के अनुभव क्रमश: खुद्दक निकाय की थेरीगाथा तथा थेरग था में संग्रहीत हैं। लिच्छवियों का एक समुदाय ऐसा भी था, जो बुद्ध को यथोचित सम्मान नहीं देता था। निग्गंठ सच्चक के साथ बुद्ध के दर्शनार्थ जानेवाले पाँच सौ लिच्छवियों द्वारा बुद्ध का सम्मान शास्ता के अनुरूप न कर एक साधारण सम्मान्य व्यक्ति के रूप में किया जाना इस बात को प्रमाणित करता है। इतना ही नहीं, बुद्ध के जीवन-काल में ही कुछ वज्जित्तक भिक्षुओं ने उनके विरोध में देवदत्त का साथ दिया। वज्जिपुत्तक भिक्षुओं का यह विरोध उनके द्वारा उठाये गये दस वस्तुओं के प्रश्न को लेकर स्पष्ट रूप से बुद्ध के महापरिनिर्वाण के एक सौ वर्ष बाद बौद्धसंघ के समक्ष आया। इसके निपटारे के लिए वैशाली के बालुकाराम में द्वितीय बौद्ध-संगीति का आयोजन किया गया। किन्तु वज्जिपुत्तक भिक्षुओं के अड़े रहने के कारण सर्वसम्मत निर्णय नहीं हो सका। फलस्वरूप इस संगीति के पश्चात् बौद्धसंघ दो खेमों में बँट गया और इस प्रकार बौद्ध संघ में भेद का कलंक वज्जिपुत्तक भिक्षुओं को प्राप्त हुआ। पालि साहित्य से यह भी पता चलता है कि वैशाली जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थङ्कर निग्गठणातपुत्त अर्थात् महावीर एवं उनके अनुयायियों का गढ़ था। पहली बात तो यह १. २. ३. ४. अ० नि०, भाग-३, पृ० २३९ अ० नि०, भाग-३, पृ० ७६ म० नि०, भाग-२, पृ० २८२ । चल्लवग्ग, पृ० ३०० । वही, देखें द्वितीय संगीति । कुछ आधुनिक बौद्ध संघ में भेद के कारण के रूप में न तो इन दस वस्तुओं को मानते हैं और न इस संगीति में संघभेद होने को स्वीकार करते हैं, क्योंकि अन्य स्रोतों से इसकी पुष्टि नहीं होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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