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________________ 27 प्राकृत और संस्कृत का समानान्तर भाषिक विकास एकपक्षीय ही रह जायगा। निष्कर्ष यह कि अन्वेषण और गवेषणा क्षेत्र में प्राकृत-साहित्य एक विराट् कोष ही प्रस्तुत कर देता है। प्राकृत-साहित्य : भारतीय संस्कृति का मानचित्र : प्राकृत-साहित्य के अधीती विद्वान् डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अभिमत' के अनुसार, प्राकृत-साहित्य में जहाँ एक ओर ऐहिक समस्याओं का समृद्ध चिन्तन. पाया जाता है, वहीं दूसरी ओर पारलौकिक रहस्यपूर्ण समस्याओं के विश्वसनीय समाधान भी मिलते हैं । धार्मिक-सामाजिक-परिस्थितियों के चित्रण में प्राकृत-साहित्य की द्वितीयता नहीं है, तो अर्थनीति-राजनीति के विश्लेषण में भी इस साहित्य की एकमेवता ही सिद्ध होती है। व्यापारिक कौशल के उदाहरण एवं शिल्पकला के मनोमोहक निखार की दृष्टि से भी प्राकृत-साहित्य की श्रेष्ठता अक्षुण्ण है। प्राकृत-साहित्य मानव-सौन्दर्य के मूल्यांकन के प्रति विशेषाग्रह रखता है, अतएव इसमें मानवता के पोषक तत्त्व दान, तप, शील, सदाचार, सद्भाव आदि का निदेश बड़े मोहक और मौलिक ढंग से आकलित हुआ है। इस विवेचना के आधार पर अगर प्राकृत-साहित्य को भारत के सांस्कृतिक इतिहास का सर्वांगीण मानचित्र कहा जाय. तो अतिशयोक्ति न होगी। १. द्र० प्राकृत-भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, प्र० तारा पब्लिकेशन्स, वाराणसी, संस्करण, सन् १९६६ ई०, पृ० ५५६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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