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________________ गरिमा विहीन आज की वैशाली यदि ग्रहण कर ले तो पन्द्रह दिन बाद, कोई गुप्तचर सिद्ध पुरुष का वेष धारण कर संघ के प्रमुखों के बीच आक्रोश में आकर कहे, ' यह प्रमुख मेरी भार्या, पुत्रवधू, भगिनी अथवा दुहिता को पकड़कर ले आया है । संघ उसे दण्ड दे तो राजा उस प्रमुख का समर्थन कर उसे प्रतिपक्षियों से भिड़ा । यदि संघ दण्ड की व्यवस्था न करे तो वधकर्ता गुप्तचर बने हुए उस सिद्ध पुरुष की रात्रि में हत्या कर दे । तत्पश्चात् अन्य लोग उसी वेष में उपस्थित होकर आक्रोशपूर्वक कहें, 'वह व्यक्ति ब्राह्मणघातक और ब्राह्मणी का जार है । ......... इस प्रकार हम देखते हैं कि जिस भेदनीति को अपना कर अजातशत्रु का महामंत्री वर्षकार वैशाली के वज्जी गणतंत्र को नष्ट करने में सफल हो सका, उसी भेदनीति का विस्तारपूर्वक अर्थशास्त्र में विवेचन किया गया है। उल्लेखनीय है कि पंचतंत्र और हितोपदेश में सुहृदभेद और विग्रह के रूप में इस नीति को पशु-पक्षियों की मनोरंजक कथा-कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है । संघ - व्यवस्था से महावीर और बुद्ध प्रभावित ढंग से करते थे । भेरी का शब्द फिर धार्मिक, सामाजिक और जानने के लिए मतगणना की मतदान (छंद) होता । कोई वज्जी- लिच्छवी अपने सब कामों को जनतांत्रिक सुनते ही वे संथागार (लोकसभा) में एकत्र हो जाते और राजनैतिक विषयों पर चर्चा होती । बहुमत और अल्पमत जाती और भिन्न-भिन्न रंगों की शलाकाओं ( सलाई) द्वारा प्रस्ताव पेश करने के बाद प्रस्ताव को दुहराते समय उस पर तीन बार बोलने का अवसर दिया जाता । उसके बाद ही निर्णय सुनाया जाता। उनकी न्याय प्रणाली आदर्श मानी जाती थी । यदि किसी पर चोरी आदि अपराध का दोषारोपण किया जाता तो एकदम उस व्यक्ति को पकड़कर जेल में नहीं पहुँचा दिया जाता । सर्वप्रथम उसे विनिश्चय महामात्र ( न्यायाधीश), फिर व्यावहारिक, फिर सूत्रधार, फिर सेनापति, फिर उपराजा और अन्त में राजा के सुपुर्द किया जाता । यदि उसका अपराध सिद्ध हो जाता तो फिर प्रवेणी-पुस्तक ( कानूनी किताब ) के अनुसार उसे दण्ड दिया जाता । वस्तुतः क्रमशः लिच्छवी और शाक्य गण उत्पन्न महावीर और बुद्ध दोनों ही लिच्छवियों की गणतांत्रिक व्यवस्था से प्रभावित हुए थे और उन्होंने अपने भिक्षु और भिक्षुणी संघ के समक्ष लिच्छवी गणव्यवस्था को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया था । महावीर ने तो अपने संघ को साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका, इन चार भागों में विभक्त कर उसे सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया था । उल्लेखनीय है कि जैन और बौद्ध संघ का नियंत्रण और शासन किसी एक व्यक्ति के हाथ में न होकर समस्त संघ के अधिकार में गिना जाता था । प्राचीन जैन और बौद्धसूत्रों में संघ और गण का उल्लेख जगह-जगह मिलता है । बौद्धधर्म में बुद्ध और धर्म के साथ संघ को जोड़ा गया है । बौद्ध सूत्रों में उल्लिखित पूरण कस्सप, मक्खल गोसाल, पकुध कच्चायन, अजित केस कंबली, संजय बेलट्ठिवुत्त और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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