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________________ गरिमाविहीन आज की वैशाली वैशाली की अंबापालि गणिका का उल्लेख किया जा चुका है। यह गणिका नगरी की अनुपम शोभा समझी जाती थी और बड़ी धूमधाम के साथ गणिका के पर पर अभिषिक्त हुई थी। वैशाली के निर्माण में उसका बड़ा हाथ था। जैसा उसके नाम से जान पड़ता है, वह आम्रवनों की स्वामिनी थी। भगवान बुद्ध उसके बगीचे में आकर ठहरे थे। अगले दिन अंबापालि ने उन्हें भोजन के लिए निमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। वैशाली के लिच्छवियों का निमंत्रण वे स्वीकार न कर सके। अंबापालि ने भगवान बुद्ध को अपनी संपत्ति का बहुभाग दान देकर सम्मानित किया। अन्त में उसने भिक्षुणी संघ में प्रवेश कर प्रव्रज्या ग्रहण की । बौद्धों के थेरीगाथा में अंबापालि की मार्मिक उक्तियाँ संग्रहीत हैं। वज्जी गणतंत्र की नगरी वैशाली वज्जी गणतंत्र की प्रमुख नगरी थी। वज्जी संघ के अंतर्गत आठ कुलों का अंतर्भाव होता है, जिनमें विदेह, लिच्छवी, ज्ञातृ और वज्जी प्रमुख माने गये हैं, जिनमें लिच्छवी सर्व-प्रमुख थे। हैहय वंश में उत्पन्न, लिच्छवियों में प्रमुख, काशी-कोशल के १८ गणराजाओं का नेता चेटक वैशाली का शासक था। वह प्रभावशाली गणराजा था जिसकी बहन त्रिशला ज्ञातृकुल के क्षत्रियों के मुखिया और महावीर के पिता गणराजा सिद्धार्थ से ब्याही थी। सिद्धार्थ काश्यप गोत्र में जन्मे थे तथा सिज्जंस (श्रेयांस) अथवा जसंस (यशस्वी) नाम से भी कहे जाते थे। त्रिशला वसिष्ठ गोत्रीय' थी और विदेह में पैदा होने के कारण विदेहदत्ता कही जाती थी। प्रिय होने के कारण उसे प्रियकारिणी भी कहते थे। वैशाली में जन्म लेने के कारण महावीर ज्ञातृपुत्र (जैसे गौतम बुद्ध को शाक्यपुत्र; गोशाल को मंखलपुत्र) कहा जाता था। लिच्छवी कुल में पैदा होने के कारण वे प्रियदर्शी थे, और उनका सुन्दर और सुडौल शरीर आकर्षण पैदा करता था। उल्लेखनीय है कि बौद्धसूत्रों में लिच्छवियों के सौन्दर्य की बहुत प्रशंसा की गयी है। जब वे वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित हो, रंग-बिरंगे वस्त्र पहन अपनी सुवर्णजटित शिविकाओं, रथों अथवा हाथियों पर सवार होकर प्रयाण करते तो स्वर्ग के देवता भी उनके सामने तुच्छ जान पड़ते थे। भगवान बुद्ध ने 'तावतिस' देवों के साथ उनकी तुलना की है । कौटिल्य के अर्थशास्त्र (१११५) में लिच्छवी और वृज्जि (वज्जी) के साथ मल्लों का भी उल्लेख किया गया है। ये लोग राजा शब्द का प्रयोग किया करते थे। अंगुत्तरनिकाय (१, पृ. २१३) में वज्जी और मल्ल की गणना १६ जनपदों में की गयी है। कुसीनारा (क सिया) और पावा (पडरौना) मल्लों की राजधानियाँ थीं; कुसीनारा में बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ था। जैनों के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की निर्वाणभूमि सम्मेदशिखर (पारसनाथ हिल) को मल्ल पर्वत भी कहा गया है। मनुस्मृति (१०।२२) में मल्लों और लिच्छवियों को व्रात्यों की संतान के रूप में उल्लिखित कर उनकी संकर वर्ण में गणना की १. काश्यप और वसिष्ठ दोनों ब्राह्मणों के गोत्र माने गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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