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VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3
उपर्युक्त श्लोक का तात्पर्य है ! अरने भैंसे के खतरे की कहानी तिरहुत वाले अध्याय में कही जा चुकी है ।* "चमत्कारिक शक्ति द्वारा वज्रासन को "देखा" इसका क्या तात्पर्य था? जब गुरु शरद्-सत्र' में उपदेश कर रहे थे, इन्होंने उक्त धर्मोपदेशीय स्थल के ऊपरी तल्ले में इन श्लोकों को दिखलाया । “तुमने लिखा है इसे ?" गुरु ने पूछा । "मैंने पाँच वर्ष पूर्व इते' उ-र् में इसे लिखा था" इन्होंने कहा । गुरु ने तब (इन इलोकों का) अर्थ बताया।
धर्मस्वामिन् ने कहा "जब वे लोग वैशाली नगर पहुँचे वहाँ के सभी निवासी भोर में ही तुरुष्क फौज के भय से भाग खड़े हुए थे। एक सह-अतिथि ने पूछा, 'हम लोग कब निकल चलें ?' जब तीन सौ सहयात्री चलने की तैयारी कर रहे थे तो मैंने एक स्वप्न देखा था कि मैं वज्रासन में पहुँच गया हूँ और ज्येष्ठ धर्मस्वामिन् भी वहाँ पहुंच गए हैं। उन्होंने अपनी छड़ी से मन्दिर का कपाट खोला, बोले, 'पुत्र इन्हें भलीभाँति देखो, डरो मत ! यहाँ आओ ।' जगने पर मुझे अपने अन्तर में बड़ा ही सुखद अनुभव हुआ था।
उजाला होते ही सभी वैशाली निवासी भाग चले लेकिन मैं नहीं भागा । एक साथी ने कहा, 'ठीक है, मैं भी यहीं रहूँगा।' और वहीं रह गए। हम तीनों के वहीं रह जाने से उन अतिथियों में से भी एक वहीं रह गया। सूरज उगने पर द्वार के सामने सड़क पर आया, एक गुजर-बसर करने वाली महिला वहीं सड़क पर ठहरी हुई दिखाई दी; सराय के मेहमानों ने पूछा, 'क्या कोई अच्छा समाचार हमें बताने को तुम्हारे पास है ?' महिला बोली, 'सैनिक पश्चिम भारत के लिए कूच कर गए।' सभी ने इस समाचार का आनन्द लिया और कुछ ने कहा 'वह महिला स्वतः भगवती तारा रही होगी,' सुनकर धर्मस्वामिन् अपने-आप मुस्कुरा उठे।
[डॉ० जी० राएरिख, मास्को द्वारा किए गए मूल तिब्बती से अंग्रेजी भाषांतरण] *
अनु०-आनन्द भैरव शाही
१. स्तोन् चोस् २. पर्-क्लुण स् के अन्तर्गत * पूर्ण हिन्दी-अनुवाद अभी प्रकाश्य हैं। धर्मस्वामी की जीवनी उनके शिष्य द्वारा
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