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________________ पउमचरिउ - रात्रि के मध्य में निरंकुश मत्त महाहस्ती की तरह राम ने अयोध्या से प्रस्थान किया तथा प्रभात होने तक उन्होंने आधे ' कोस की दूरी तय की। फिर कुछ दूर और आगे बढ़ने पर गम्भीरा महानदी मिली । लंका से लौटते समय भी मार्ग में आने बाले मुख्य नगरों, पर्वतों आदि को दिखलाते हुए राम ने गम्भीरा नदी के बाद अयोध्या की ओर ही संकेत किया है । उपर्युक्त वाल्मीकि तथा विमल परम्परा की रामायणों में तमसा और गम्भीरा इन दोनों नदियों का उल्लेख जिस क्रम में हुआ है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वह नदी तमसा नाम की हो अथवा गम्भीरा नाम को, किन्तु, वह है अयोध्या के अत्यन्त समोप हो जिसे राम ने वन जाने के मार्ग में सर्वप्रथम पार किया था । इस प्रकार वह कदापि इन्दौर के समोप वाली गम्भीर नहीं है और न राम को अयोध्या वापस बुलाने के लिए गये भरत और कैकेयो के ठहराव स्थान में आने वाला नदी । अवाध्या और इन्दोर की दूरी तो सर्व विदित ही है, अब रही बात राम के उस मार्गस्थ निवास स्थान का दूरी जहाँ भरत और कैकेयी उन्हें अयोध्या वापस लाने के लिए पहुँचे थे । पउमचरियं, पद्मपुराण तथा पउम - चरिउ, इन तीनों हो जैन रामायगों में इसकी बड़ो लम्बो दूरी बतायो गयी है । उस स्थान पर जहाँ राम और लक्ष्मण सीता को मन्थर गति के कारण बहुत दिनों में पहुँच पाये थे, वहाँ भरत पवन के समान शघ्रगामी घोड़े को सवारी के कारण छह दिनों में पहुँचे, जबकि उन रामायणों के अनुसार ही गम्भीरा को दूरी अयोध्या से एक कोस है । पुरुषोत्तम राम और लक्ष्मण सीता की गति को ध्यान में रखकर गव्यूति प्रमाण मार्ग को ही सुखपूर्वक तय कर पाते थे । आधी रात में कर प्रभात होने तक सोता सहित राम और लक्ष्मण कुछ आधे कोस पाये । तमसा और गम्भीरा २. 1. उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस महानदो को वन गमन के मार्ग में अयोध्या से निकलने पर राम ने सर्वप्रथम पार किया था, वह अयोध्या के अत्यन्त समीप ही थी, बहुत दूर नहीं । अब रही बात तमसा और गम्भीरा नामों में अन्तर की, तो इस १. ४. अद्ध-कोसु संपाइय जावें हि, विमलविहाणु चउद्दिसु तावें हिं । पउम चरिउ, सं० २३, कड० १३, पउ० सं० २३, कड० १२, पं० ५ पं० ३ ७८, २०, ६,८ पउमचरियं - उद्देश ३२, गाथा ४३ पद्मपुराण - पर्व ३२, श्लो० ११७ पउमचरिउ - संधि २४, कड०८, पं० ४ पउमचरिउ ५. २३, १२, ५ ६. पद्मपुराण – पर्व ३२, श्लो० २२ ७. पउमचरिउ – सं० २३, कड० १२, पं० ५ 33 Jain Education International 11 157 #7 "3 " से अधिक की नहीं एक दिन में एक अयोध्या से प्रस्थान की दूरी ही तय कर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522603
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1982
Total Pages294
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size6 MB
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