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________________ डॉ० हीरालाल जैन हजारी प्रसाद द्विवेदी डा० हीरालालजी जैन प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य के जाने-माने विद्वान थे। उन्होंने प्राकृत और अपभ्रश में अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया था और अपभ्रंश साहित्य के बहुत से दुर्लभ ग्रन्थों को प्रकाश में लाकर अपभ्रंश साहित्य के प्रेमियों को अनुपम साहित्य भेट किया था। मुझे उनसे मिलने और सत्संग करने का अवसर मिला है। यद्यपि मैं उनके नाम से पहले से ही परि. चित था परन्तु उनका प्रथम दर्शन नागपुर में हुआ था। वे नियमित रूप से प्रातःकाल टहलने के लिए निकलते थे और मैं भी आचार्य विनय मोहन शर्मा के साथ निकल पड़ता था। हम लोगों का एकमात्र विषय अपभ्रश साहित्य होता था। वे वहुत ही शान्त, सौम्य, प्रकृति के विद्वान् थे। विनम्रता के तो वह रूप ही थे परन्तु साथ ही उनमें एक अद्भुत दढ़ता भी थी। मुझे कई बार ऐसा अनुभव हुआ कि वे किसी विषय में सुनने को तो बराबर उत्सुक रहते थे परन्तु अपनी प्रतिक्रिया वाद में व्यक्त करते थे। उनका सम्पादित 'पाहुड़ दोहा' हम लोगों की बातचीत का एक विशेष विषय था। उन्हें यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई थी कि उस काल के नाथ-सिद्धों की वाणियों में भी इस प्रकार की उक्तियाँ मिलती थीं। वे शान्त भाव से सारी बातें सुनते थे, और बाद में उस पर विचार करते थे। परन्तु पक्ष में या विपक्ष में कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते थे। नागपुर का वह सत्संग मुझे सदा स्मरण रहेगा। वे वैशाली शोध संस्थान में जब थे तब भी मुझे कई वार उनका दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनमें विनय, शील, विद्वत्ता और दृढ़ता का भिलित रूप था। वे विद्यावती साधक थे। यह जानकर मुझे बड़ा धक्का लगा कि ऐसे विवेकी विद्वान् अब हमारे बीच नहीं रहे। विद्वत्ता के साथ-साथ शील और विनय का ऐसा आश्रय अव हमारे बीच नहीं रहेगा और हम खुलकर उनसे शास्त्र-चर्चा नहीं कर सकेंगे। उन्होंने लगभग १४ पुस्तकें हमें दी हैं जो एक-से-एक महत्त्वपूर्ण हैं । इन पुस्तकों से जहाँ जैन शास्त्रों के उनके प्रगाढ़ अध्ययन का पता लगता है वहीं अपभ्रश साहित्य में उनकी गहरी पैठ का भी पता चलता है। उनकी विद्वत्ता और सुजनता अब केवल याद करने की चीज रह गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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