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________________ 294 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 २ का प्रबोधक नहीं है तो अन्योन्याश्रय' नामक दोष उत्पन्न होता है । इस दोष से बचने के लिये बौद्धों के पास कोई उपाय नहीं होने से यह सिद्ध नहीं होता है कि अभ्यास न होने से निर्विकल्पक क्षणिकत्व के विषय में विकल्पवासना का प्रबोधक नहीं है | क्षणिकत्वादि में प्रकरण के अभाव होने से निर्विकल्पक क्षणिकत्वादि में विकल्पवासना का उद्बोधक नहीं है, यह भी कथन ठीक नहीं है क्योंकि क्षणिक और अक्षणिक का विचार करते समय क्षणिक का प्रकरण भी है । 3 बुद्धिपाटव से बौद्धों का तात्पर्य क्या नीलादि में दर्शन का विकल्प उत्पन्न करना है अथवा स्पष्टतर अनुभव का होना अथवा अविद्याजनित वासना के विनाश से आत्मलाभ होना ? प्रथम विकल्प मानने पर अन्योन्याश्रय दोष है क्योंकि क्षणिकादि के विषय में निर्विकल्पक दर्शन विकल्पवासना का प्रवोधक नहीं है, इस बात के सिद्ध हो जाने पर विकल्पवासना को उत्पन्न करने रूप पाटव के अभाव की सिद्धि होने पर क्षणिकादि के विषय में विकल्पवासना का प्रबोधक नहीं है, यह बात सिद्ध होगी । नीलादि के स्पष्टतर अनुभव की तरह क्षणिकत्व का भी स्पष्टतर अनुभव बौद्ध मत में मान्य होने से द्वितीय विकल्प में क्षणिकत्वादि में भी निर्विकल्प विकल्पवासना का प्रबोधक होना ही चाहिये। इसी प्रकार आथित्व से आपका तात्पर्य या तो अभिलाषा का होना या जिज्ञासा का होना होगा ? आथित्व का तात्पर्य तो ठीक नहीं है, क्योंकि प्रायः यह देखा जाता है कि सर्प और काँटे से बचने की सभी अभिलाषा करते हैं, फिर भी पैर में काँटा लगने से अनभिलषित वस्तु के प्रति विकल्प उत्पन्न होता है । प्रार्थित्व का तात्पर्य जिज्ञासा मानना भी ठीक नहीं है क्योंकि नीलादि पदार्थों की जिज्ञासा की तरह क्षणक्षय को जानने की जिज्ञासा होती है, इसलिए क्षणिकत्व में भी विकल्पवासना का प्रबोध होना चाहिये । अतः बौद्धों का यह कथन खंडित हो जाता है कि क्षणिकत्व में अभ्यास आदि के न होने से निर्विकल्पक ज्ञान विकल्प - वासना को प्रबुद्ध नहीं कर सकता है । " शब्दार्थ विकल्पवासना भी सविकल्पक का उत्पादक नहीं है । अब अपने पक्ष के समर्थन में बौद्ध यह कहना चाहें कि अभ्यास आदि सापेक्ष अथवा निरपेक्ष दर्शन विकल्प को नहीं उत्पन्न करते हैं लेकिन शब्दार्थ रूप १. क्षणिकत्व आदि के विषय में दर्शन विकल्पवासना का प्रयोजन नहीं है यह सिद्ध अभाव की सिद्धि उत्पन्न करने रूप अभ्यास के अभ्यास का अभाव सिद्ध होने पर विकल्पवासना का प्रबोधक नहीं है, क्षणिकत्व के सिद्ध होगा, होने पर बहुत बार विकल्प को होगी और इस प्रकार से विषय में निर्विकल्पक दर्शन यही अवस्था है । २. प्र० क० मा०, पृ० ३४ । ४. वही० पृ० ३४ । Jain Education International ३. ५. वही ० पृ० ३४ । वही, पृ० ३४ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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