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________________ हिन्दू तथा जैन साधु-आचार 247 सामग्रियों के आधार पर हिन्दू तथा जैन साधु-प्राचारों का क्रमशः अवलोकन करेंगे। मनुस्मृति साधुव्रत के अधिकारी ___ मनुस्मृति में साधु-आचार का वर्णन वैदिक एवं वर्णाश्रम परम्परा पर आधारित है । मनु ने ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास इन चारों आश्रमों का क्रमानुसार पालन करने पर जोर देते हुए साधुनों के भी वानप्रस्थी और संन्यासी नाम के दो विभाग कर दिये हैं। यही कारण है कि वानप्रस्थाश्रम में प्रवेश करने से पूर्व स्नातक द्विज के लिए उन्होंने विधिवत् गृहस्थाश्रमी' होना आवश्यक बतलाया है। इतना ही नहीं, मनु के मत से गृहस्थ जब अतिवृद्ध हो जाये, उसकी त्वचा शिथिल पड़ जाये तव सांसारिक विषयों से स्वभावतः विरत हुआ वह वन का आश्रय ग्रहण करे । परिग्रहत्याग वानप्रस्थी वन जाने की स्थिति में वह ग्राम्य आहार एवं उपकरणों का भी परित्याग कर दे। पत्नी की इच्छानुसार ही, वह उसे अपने साथ ले ले अथवा पुत्र की संरक्षा में ही रख दे। पर वन में भी वानप्रस्थी श्रौत अग्नि तथा उससे सम्बन्धित साधन स्रक, स्रवा आदि के साथ ही निवास करे। वानप्रस्थी के लिए मुनिनिमित्तक अन्नों एवं वन में उत्पन्न पवित्र शाक, मूल, फलादि से गृहस्थों के लिए विहित पंचमहायज्ञों का पालन करना भी मनु ने आवश्यक बतलाया है। मुनि की वेश-भूषा मुनि की वेश-भूषा एवं रूप के सम्बन्ध में भी मनु के विचार बड़े स्पष्ट हैं। उनकी राय में मुनि चाहे तो मृगचर्म धारण करे अथवा वस्त्रखण्ड', पर, उसे जटा, दाढ़ी, मूछ एवं नख रखने ही हैं। मुनि का आहार मुनि अपने भोजन में से यथाशक्ति बलि तथा भिक्षा प्रदान करे तथा आश्रम में आये हुए अतिथियों को जल, कन्द, मूल, फलादि से अर्चना भी करे । तपस्वी को नित्यवेदाभ्यास, दानशीलता, निर्लोभ एवं सर्वहित में रत रहते हुए अमावस्या, पूर्णिमा आदि पर्यों में शास्त्रानुसार किये जाने वाले यज्ञों का भी संपादन करना चाहिए। उस मुनि को वन में उत्पन्न नीवार आदि से निर्मित यज्ञ के योग्य हवि को देवताओं को अर्पित कर शेष स्वयंकृत लवण' के साथ ग्रहण १. मनु० अध्याय ६/१ ५. मनु० अध्याय ६६ २. ,, , ६/२ ७. , , ६१८ ४. , , ६।४ ८. , ६।१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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