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________________ 244 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BUI LETIN NO. 2 प्रस्तुत किया है।' 'ए स्टडी आन ध्यान इन दिगम्बर सेक्ट' (१६६१), 'इथिक्स आफ जैनिज्म एण्ड बुद्धिज्म' (१९६३) तथा 'इसिभासियइम' (१९६६) एवं 'दसवेयालियसुत्त' (१६६८) का जापानी अनुवाद आदि जैनविद्या पर आपकी प्रमुख रचनाएं हैं।२ सन् १९७० ई० में डा० एच० उइ (H. Ui) की पुस्तक 'स्टडी आफ इण्डियन फिलासफी' प्रकाश में आयी। उसके दूसरे एवं तीसरे भाग में उन्होंने जैनधर्म के सम्बन्ध में अध्ययन प्रस्तुत किया है। ___टोकियो विश्वविद्यालय के प्रो. डा० एच० नकमुरा (H. Nakamura) तथा प्रो० यूतक औजिहारा (Yotak Ojihara) तथा वर्तमान में जैनविद्या के अध्ययन में अभिरुचि रखते हैं। उनके लेखों में जैनधर्म का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। श्री अत्सुशी उनो (Atsushi Uno) भी जैन विद्या के उत्साही विद्वान् हैं। इन्होंने 'वीतरागस्तुति' (हेमचन्द्र), 'प्रवचनसार, पंचास्तिकायसार, तथा 'सर्वदर्शनसंग्रह' के तृतीय अध्याय का जापानी अनुवाद प्रस्तुत किया है। कुछ जैनधर्म-सम्बन्धी लेख भी लिखे हैं। सन् १६६१ में 'कर्म डाक्ट्राइन इन जेनिज्म' नामक पुस्तक भी आपने लिखी है।४ विदेशी विद्वानों द्वारा जैनविद्या पर किये गये कार्यों के इस विवरण को पूर्ण नहीं कहा जा सकता। बहुत से विद्वानों और उनके कार्यों का उल्लेख साधनहीनता और समय की कमी के कारण इसमें नहीं हो पाया है। फिर भी विदेशी विद्वानों की लगन, परिश्रम एवं निष्पक्ष प्रतिपादनशैली का ज्ञान इससे होता ही है। विदेशी विद्वानों द्वारा जैनविद्या के क्षेत्र में किये गये इस योगदान का एक परिणाम यह भी हुआ कि भारत और विदेशों में जैनविद्या के अध्ययन-अध्यापन के लिए स्वस्थ वातावरण तैयार हुआ है। अनेक विदेशी विद्वान् भारत की विभिन्न संस्थाओं में तथा अनेक भारतीय विद्वान् विदेशों के विश्वविद्यालयों में जैनविद्या पर शोध-कार्य करने में संलग्न हैं। 9. Jain Journal, Oct. 1973. p. 78. २. ibid, p. 77. ३. ibid. ४. 'Progress of Prakrit and Jain Studies's Presidental address of Nathmal Titia in AIOC. Varanasi, 1968. See-Ghatage-Above article and Winternitz--History of Indian literature Vol-II, Jain Literature. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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