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VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2
उनके समय में लड़की पराया धन थी और मां-बाप १३ - १४ वर्ष का होते ही उसके विवाह के लिए व्याकुल हो उठते थे । 'मानस' का कवि समाज के नैतिक पतन से वहुत दुःखी है । उसके अनुसार, निशाचर वे हैं जो परपीड़क और समाज-विरोधी कामों में लगे हुए हैं । वह यह देखकर क्षुब्ध हैं कि अभेदवादी तपस्वी लाखों की संपत्ति के स्वामी बने बैठे हैं और गृहस्थ दरिद्र है । ऐसा नहीं लगता कि इस्लामी संस्कृति के विरुद्ध कोई सांस्कृतिक क्रान्ति गठित करना 'मानस' का उद्देश्य है । पिछले सवा हजार वर्षों में भारत का समाज स्थितिशील रहा है और एक स्थितिशील समाज की जड़ता तोड़ने के लिए कवि उसपर मानसिक आघात ही कर सकता है। ताकि उसमें व्यापक गतिशील मानवता की संवेदना का संचार हो सके। मैं समझता हूँ कि दोनों कवि अपने युगस्वीकृत - प्रास्था और परंपरा के संदर्भ में अपने पाठकों को व्यापक अनुभूति के मुक्त आकाश में उड़ने देते हैं ।
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